स्मार्ट सिटी का 'जल-समाधि' महोत्सव: पटना डूबा, नेताजी बोले- ' 2005 से पहले कुछ था जी !"
ई त हम आये हैं तब से लोग बरसात में पानी का आनंद ले रहा है। अब वाटर मेट्रो चलेगा सब जगह। पिछले 10-12 घंटों से देवराज इंद्र की 'असीम कृपा' ने बिहार की राजधानी पटना को सचमुच 'धो' डाला है. शहर के स्मार्ट सिटी बनने के सपनों को धोते हुए, गली-मोहल्ले, मुख्य सड़कें और यहाँ तक कि लोगों के घर भी पानी में तैरते नजर आ रहे हैं. पटना जंक्शन से लेकर डाकबंगला चौराहा, जीपीओ गोलंबर और कंकड़बाग तक, हर तरफ 'जल ही जीवन' का अद्भुत नज़ारा है – बस थोड़ा ज्यादा ही 'जीवन' हो गया है!
पटना जंक्शन और पाटलिपुत्र स्टेशन का तो हाल ऐसा है कि पूछिए मत! लग रहा है, किसी ने रेलवे ट्रैक को तालाब में बदल दिया हो, ताकि यात्रीगण ट्रेन का इंतजार करने की बजाय, नाव खेने का अभ्यास कर सकें. अब इसे विकास न कहें तो क्या कहें?
हमारे 'दूरदर्शी' नेताओं और 'सक्षम' अधिकारियों ने शायद सोचा था कि 'स्मार्ट सिटी' का मतलब होगा, शहर को इतना आधुनिक बना देना कि उसे ड्रेनेज की ज़रूरत ही न पड़े. या शायद उनका प्लान यह था कि बरसात में पटना को वेनिस का भारतीय संस्करण बना दिया जाए, ताकि टूरिज्म को बढ़ावा मिले. आखिर, लोग नाव की सवारी के लिए दूर क्यों जाएं, जब अपने घर के सामने ही मिल जाए!
अभी तो सिर्फ सावन का महीना है और भादो का हिस्सा बाकी है. अगर इंद्रदेव की 'मेहरबानी' ऐसी ही बनी रही, तो शायद पटना के लोग 'एक्वामैन' बनने का प्रशिक्षण लेना शुरू कर देंगे. क्या पता, अगले कुछ सालों में पटना के बच्चों का ओलंपिक में तैराकी में दबदबा हो जाए!
स्थानीय निवासियों का कहना है कि हर साल की तरह इस साल भी उन्हें वही पुरानी 'जल-कथा' सुनने को मिल रही है - "हम समीक्षा करेंगे," "प्लानिंग चल रही है," और "ये तो प्रकृति का प्रकोप है." लगता है, प्रकृति का प्रकोप सिर्फ पटना पर ही होता है, बाकी शहरों पर नहीं!
खैर, जब तक हमारे 'स्मार्ट' योजनाकार और 'कर्मठ' अधिकारी अगले साल की बाढ़ की तैयारी में जुटते हैं, तब तक पटनावासी इस 'अनोखे' अनुभव का आनंद लें. आखिर, हर साल ऐसा 'स्विमिंग पूल' का अनुभव किसे नसीब होता है? और हां, जो लोग बाहर से पटना आने की सोच रहे हैं, वे अपना छाता और लाइफ जैकेट साथ लाना न भूलें!

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