खगौल में बहुजन एवं अल्पसंख्यक सामाजिक जागृति मंच द्वारा ऐतिहासिक प्रशिक्षण शिविर: शिक्षा, प्रतिनिधित्व और सामाजिक न्याय पर गहन चिंतन _ प्रो प्रसिद्ध कुमार।



    

 

दिनांक 27 जुलाई, 2025 को खगौल, पटना में "बहुजन एवं अल्पसंख्यक सामाजिक जागृति मंच" द्वारा एक महत्वपूर्ण एक दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया। यह शिविर 25 जुलाई, 1902 को साहू जी महाराज द्वारा आरक्षण लागू करने की स्मृति दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया था, जिसका उद्देश्य 'संविधान बचाओ एवं बहुजन व्यवस्था बचाओ' था।

इस कार्यक्रम में पश्चिम बंगाल से आए प्रशिक्षक, श्री अब्दुल मन्नान ने शिक्षा के वास्तविक अर्थ और सामाजिक परिवर्तन में उसकी भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने समझाया कि किसी जानकारी को प्रयोग में लाना ही ज्ञान है, और जब यह जानकारी समाज हित में उपयोग की जाती है, तो वह 'शिक्षा' कहलाती है। जानकारी होना और शिक्षित होना, इन दोनों में यही मौलिक अंतर है।

श्री मन्नान ने भारत के इतिहास पर एक गहरा दृष्टिकोण प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने आर्यों के आक्रमण और मूलनिवासियों के विभाजन, वर्ण व्यवस्था से जाति व्यवस्था तक के संक्रमण, और नालंदा तथा तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालयों के माध्यम से बहुजन विचारधारा के उदय पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि किस प्रकार सम्राट अशोक के बाद शुंगों ने बहुजन व्यवस्था को समाप्त किया और जाति व्यवस्था को स्थापित किया, जिससे ज्ञान और विज्ञान का पतन हुआ।

उन्होंने सच्चर कमेटी की रिपोर्ट का भी उल्लेख किया, जिसमें भारत में मुसलमानों के प्रतिनिधित्व की कमी पर प्रकाश डाला गया था, और इस रिपोर्ट के लागू न होने पर चिंता व्यक्त की। श्री मन्नान ने ज्योतिबा फुले और रानी विक्टोरिया के बीच आरक्षण की मांग को लेकर हुए पत्राचार का जिक्र किया और बताया कि आरक्षण का विचार सर्वप्रथम साहू जी महाराज के मन में 1901 की जनगणना के दौरान आया था, जब उन्होंने कमजोर वर्गों तक संसाधनों की पहुंच न होने की समस्या को समझा था।

साइमन कमीशन, गोलमेज सम्मेलन और पूना पैक्ट की ऐतिहासिक घटनाओं के माध्यम से उन्होंने आरक्षण के लिए हुए संघर्षों को समझाया। उन्होंने बताया कि कैसे डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने दलितों के लिए प्रतिनिधित्व की लड़ाई लड़ी, जो बाद में आरक्षण में परिवर्तित हुई, और कैसे यह प्रतिनिधित्व, जहां केवल SC वर्ग के लोग वोट देते थे, आरक्षण से अलग है, जहां सभी लोग वोट देते हैं। उन्होंने 1931 में मुस्लिमों के लिए 33% पृथक आरक्षण की बात का भी जिक्र किया, जो उस समय SC/ST के लिए भी मांगी जा रही थी।

प्रशिक्षक ने मनुवादियों के पीछे चलने वाले 'कुत्ते रूपी नेताओं' की अवधारणा को स्पष्ट किया, जिनके पास वास्तविक शक्ति नहीं है, बल्कि वह उन ब्राह्मणों के हाथों में है जो 'चेन' पकड़े हुए हैं। उन्होंने डॉ. अम्बेडकर के विचारों पर जोर दिया कि पिछड़ों को भी आरक्षण मिलना चाहिए, जिसका विरोध पटेल ने  नही समझने के कारण किया था, और इसके परिणामस्वरूप कालेकर आयोग का गठन हुआ। हालांकि, मंडल कमीशन, जो कालेकर आयोग का एक छोटा हिस्सा था, ही लागू हो पाया, और वी.पी. सिंह द्वारा 52% की बजाय 27% आरक्षण लागू करने के बाद उनकी सरकार गिर गई। उन्होंने EWS आरक्षण के बिना किसी विरोध के मिलने पर भी सवाल उठाए, यह दर्शाते हुए कि लोकतंत्र में प्रतिनिधित्व कितना महत्वपूर्ण है।

श्री मन्नान ने इस बात पर जोर दिया कि "जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी" होनी चाहिए, और डॉ. अम्बेडकर को साहू जी और पेरियार से मिली विरासत का उल्लेख किया। उन्होंने प्रतिभागियों से किसी भी बात को आंख मूंदकर न मानने, बल्कि उसका विश्लेषण करने की क्षमता विकसित करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि हमारी कमाई का हक केवल परिवार का ही नहीं, बल्कि समाज का भी है, और हमारा लक्ष्य केवल नौकरी पाना नहीं, बल्कि 'बहुजन शासक' बनाना होना चाहिए, ताकि व्यवस्था परिवर्तन हो सके। उन्होंने अंबेडकर के इस कथन को दोहराया कि हमारा काम चैरिटी नहीं, बल्कि अधिकार देना और जागृत करना है। उन्होंने बताया कि कोई भी संगठन ऊपर से टूटता है, नीचे से नहीं, क्योंकि कार्यकर्ता ईमानदार होते हैं।

कार्यक्रम में रंगकर्मी नवाब आलम ने भी संविधान की खूबियों और उसे अक्षुण्ण रखने की आवश्यकता पर बात की। मोहन पासवान, अनिता पासवान, शत्रुध्न राय, फणीश अकेला ,  रंजन ठाकुर सहित बिहार के अन्य जिलों से बामसेफ के कार्यकर्ताओं ने इस कार्यक्रम में सक्रिय रूप से भाग लिया।

धन्यवाद ज्ञापन प्रो. प्रसिद्ध कुमार ने किया, जिन्होंने आरक्षण को सदियों के ऐतिहासिक अन्याय को सुधारने और सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों को देश की मुख्यधारा से जोड़ने का एक प्रयास बताया। उन्होंने संविधान में वर्णित धाराओं का जिक्र करते हुए आरक्षण की निरंतर आवश्यकता पर जोर दिया, हालांकि उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

यह प्रशिक्षण शिविर शिक्षा, सामाजिक न्याय और प्रतिनिधित्व के महत्व को समझने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था, जिसने प्रतिभागियों को अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों के प्रति जागृत किया।





 

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