मुंशी प्रेमचंद: व्यवस्था पर करारा प्रहार – भ्रष्टाचार, तानाशाही, छुआछूत और ऊंच-नीच के विरुद्ध उनकी आवाज़ !प्रो प्रसिद्ध कुमार।
जन्मदिन पर कोटि कोटि नमन !
मुंशी प्रेमचंद, जिन्हें 'उपन्यास सम्राट' के नाम से जाना जाता है, केवल एक लेखक नहीं थे, बल्कि समाज सुधारक भी थे। उन्होंने अपनी कहानियों और उपन्यासों के माध्यम से तत्कालीन समाज में व्याप्त बुराइयों, विशेषकर भ्रष्टाचार, तानाशाही, छुआछूत और ऊंच-नीच पर तीखा प्रहार किया। उनकी रचनाएं सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं थीं, बल्कि सामाजिक चेतना जगाने का एक सशक्त माध्यम थीं।
भ्रष्टाचार पर प्रेमचंद का वार
प्रेमचंद ने अपने साहित्य में सरकारी तंत्र में फैले भ्रष्टाचार को बखूबी उजागर किया। उन्होंने दिखाया कि कैसे आम आदमी इस भ्रष्टाचार की चक्की में पिस रहा था। उनकी कई कहानियों में रिश्वतखोरी, भाई-भतीजावाद और पद का दुरुपयोग स्पष्ट रूप से चित्रित होता है।
उनकी उक्ति: "जिस तरह बिल्ली चूहे को दबोच लेती है, उसी तरह धन भी मनुष्य को दबोच लेता है।" यह उक्ति बताती है कि कैसे धन का लोभ मनुष्य को भ्रष्ट कर देता है।
उदाहरण: उनकी कहानी 'नमक का दरोगा' में ईमानदार दरोगा वंशीधर को रिश्वतखोर पंडित अलोपीदीन से संघर्ष करना पड़ता है। यह कहानी दर्शाती है कि कैसे ईमानदारी को अक्सर भ्रष्टाचार के सामने झुकना पड़ता था, लेकिन प्रेमचंद ने ईमानदारी की विजय का संदेश भी दिया।
तानाशाही और दमन के खिलाफ आवाज़
प्रेमचंद ने ब्रिटिश हुकूमत की तानाशाही और सामंती व्यवस्था के दमनकारी स्वरूप को भी अपनी रचनाओं का विषय बनाया। उन्होंने दिखाया कि कैसे सत्ता अपनी मनमानी करती है और जनता को कुचलती है।
उनकी उक्ति: "शासन की नीति हमेशा दमन की रही है, चाहे वह राजा का हो या प्रजा का।" यह उक्ति शासन के दमनकारी स्वरूप को उजागर करती है।
उदाहरण: 'रंगभूमि' उपन्यास में सूरदास का चरित्र तत्कालीन व्यवस्था के खिलाफ खड़े होने का प्रतीक है। वह अन्याय और दमन के विरुद्ध आवाज़ उठाता है, भले ही उसे इसके लिए बड़ी कीमत चुकानी पड़े। यह उपन्यास गांधीवादी विचारों से प्रेरित है, जहाँ अहिंसक प्रतिरोध के माध्यम से व्यवस्था को चुनौती दी जाती है।
छुआछूत और ऊंच-नीच पर तीखा प्रहार
प्रेमचंद ने भारतीय समाज में गहरी जड़ें जमा चुकी छुआछूत और जातिगत भेदभाव पर लगातार प्रहार किया। उन्होंने दलितों और शोषितों के दर्द को अपनी कहानियों में आवाज़ दी और समाज से इस कुप्रथा को मिटाने का आह्वान किया।
उनकी उक्ति: "मनुष्य, मनुष्य में भेद करना महापाप है।" यह उक्ति प्रेमचंद के समतावादी दृष्टिकोण को दर्शाती है।
उदाहरण: 'सद्गति' कहानी में दुखी चमार के माध्यम से दलितों पर होने वाले अत्याचार और शोषण का मार्मिक चित्रण किया गया है। कहानी बताती है कि कैसे एक गरीब और अछूत व्यक्ति को अपनी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है और अंततः वह भूख और उत्पीड़न के कारण अपनी जान गँवा देता है। 'कफ़न' कहानी भी दलितों के जीवन की निराशाजनक स्थिति को दर्शाती है, जहाँ गरीबी और सामाजिक बहिष्कार के कारण मानवीय संवेदनाएं भी खत्म हो जाती हैं।
'गोदान' उपन्यास में उन्होंने ग्रामीण समाज की जातिगत संरचना और सामंतवाद के दुष्परिणामों को विस्तार से दिखाया है। होरी और धनिया जैसे पात्रों के माध्यम से उन्होंने किसानों और निम्न जाति के लोगों के संघर्ष को उजागर किया।
मुंशी प्रेमचंद ने अपने लेखन से समाज को दर्पण दिखाया। उन्होंने न केवल समस्याओं को उजागर किया, बल्कि उनसे लड़ने और एक बेहतर समाज बनाने की प्रेरणा भी दी। उनकी रचनाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं, जितनी उनके समय में थीं, क्योंकि भ्रष्टाचार, तानाशाही और सामाजिक भेदभाव के मुद्दे आज भी किसी न किसी रूप में हमारे समाज में मौजूद हैं। प्रेमचंद का साहित्य हमें सिखाता है कि अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाना और समानता तथा न्याय के लिए संघर्ष करना हमारा नैतिक कर्तव्य है।

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