सम्राट चौधरी वंचितों के नेता लालू यादव को सदन में भाजपा के इशारे पर अपराधी कहने का दुस्साहस किया।

   


स्मार्ट चौधरी पर गंभीर आरोप: उम्र और डिग्री में फर्जीवाड़ा, आपराधिक मामले और राजनीतिक दुर्भावना का संदेह


बिहार की राजनीति में इन दिनों स्मार्ट चौधरी के इर्द-गिर्द आरोपों का बवंडर खड़ा हो गया है। उन पर अपनी उम्र और डिग्री में फर्जीवाड़ा करने के साथ-साथ आपराधिक मामलों में संलिप्तता के आरोप भी लगाए जा रहे हैं। मामला उस वक्त और गरमा गया, जब उन्होंने एक वंचितों के नेता को सदन में अपराधी कहने का दुस्साहस किया। इन गंभीर आरोपों के बीच, यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या यह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के इशारे पर एक वंचितों के नेता को नीचा दिखाने की सोची-समझी साजिश है?

आरोपों का चक्रव्यूह: फर्जीवाड़ा और आपराधिक मामले

स्मार्ट चौधरी पर लगे आरोपों की गंभीरता को देखते हुए, यह आवश्यक है कि इनकी गहन जांच हो। उम्र और डिग्री में फर्जीवाड़ा एक गंभीर अपराध है, जो न केवल उनकी शैक्षणिक पृष्ठभूमि पर सवाल खड़े करता है, बल्कि उनकी सार्वजनिक विश्वसनीयता को भी कमजोर करता है। इसके अतिरिक्त, यदि उन पर आपराधिक मामले दर्ज हैं, तो यह और भी चिंताजनक है, खासकर तब जब वे एक सार्वजनिक पद पर आसीन होने की आकांक्षा रखते हों।


राजनीतिक दुर्भावना का आरोप और भाजपा का इतिहास


यह आरोप कि स्मार्ट चौधरी का कृत्य भाजपा के इशारे पर वंचितों के नेता को नीचा दिखाने का एक प्रयास है, राजनीतिक गलियारों में गरमागरम बहस का विषय बन गया है। इस आरोप को बल मिलता है, जब हम भाजपा के अतीत के कुछ उदाहरणों पर गौर करते हैं। उत्तर प्रदेश में, मौर्य जैसे नेताओं ने मुलायम सिंह और अखिलेश यादव के खिलाफ बयानबाजी की, लेकिन अंततः उन्हें राजनीतिक रूप से खास कुछ हासिल नहीं हुआ। इसी तरह, उमा भारती, कल्याण सिंह, विनय कटियार और दर्जनों अन्य वंचित समाज के नेताओं को भाजपा ने "मक्खी की तरह निकालकर फेंक दिया"। यह पैटर्न बिहार में भी देखा गया है, जहाँ भाजपा ने नित्यानंद राय, नंदकिशोर यादव, रामकृपाल यादव जैसे नेताओं का "प्रयोग" किया, लेकिन नतीजा "ढाक के तीन पात" ही रहा।

यह इतिहास दर्शाता है कि भाजपा ने विभिन्न राज्यों में वंचित समाज के नेताओं का उपयोग अपने राजनीतिक उद्देश्यों के लिए किया है, और जब उनका काम हो जाता है, तो उन्हें किनारे कर दिया जाता है। ऐसे में, यह संदेह करना स्वाभाविक है कि स्मार्ट चौधरी भी इसी राजनीतिक खेल का मोहरा तो नहीं हैं।


लालू-तेजस्वी का जनाधार: वंचितों के सर्वमान्य नेता


इन सबके बीच, यह स्पष्ट है कि बिहार में लालू प्रसाद यादव आज भी वंचितों के सर्वमान्य नेता बने हुए हैं। उनका जनाधार और वंचित समाज में उनकी स्वीकार्यता अडिग है। इसके साथ ही,  तेजस्वी यादव को लोग बिहार के भविष्य के रूप में देख रहे हैं। हाल ही में, नीतीश सरकार द्वारा घोषित कई कल्याणकारी योजनाएँ वास्तव में तेजस्वी यादव द्वारा पहले ही प्रस्तावित की गई थीं, जो यह दर्शाता है कि वे जनहित के मुद्दों पर लगातार काम कर रहे हैं।

यह स्थिति बताती है कि भाजपा द्वारा किसी भी "स्मार्ट चौधरी" का उपयोग वंचितों के नेता को कमजोर करने के लिए किया जाए, लालू-तेजस्वी की पकड़ बिहार की जनता पर मजबूत बनी हुई है।





 

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