मोहम्मद रफ़ी साहब एवं लता मंगेशकर : आवाज़ जो अमर है।

  


अब  प्रतीक्षा क्यों ? खगौल में ।

संगीत प्रेमियों के लिए एक अविस्मरणीय शाम आने वाली है! 31 जुलाई, 2025 को, खगौल की धरती, जो अपने आप में कला और संस्कृति का एक केंद्र है, मोहम्मद रफी साहब की 45वीं पुण्यतिथि और लता मंगेशकर जी की तीसरी पुण्यतिथि पर एक भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करने जा रही है। यह सिर्फ एक संगीत कार्यक्रम नहीं, बल्कि दो किंवदंतियों को याद करने, उनके अमर संगीत का जश्न मनाने और उनकी विरासत को आगे बढ़ाने का एक प्रयास है। 


आज, हम भारतीय संगीत के उस महान रत्न को याद कर रहे हैं, जिनकी आवाज़ ने न केवल लाखों दिलों पर राज किया, बल्कि उन्हें गहराई से छुआ भी। मोहम्मद रफ़ी साहब की पुण्यतिथि पर, हम उनके अद्भुत संगीत सफर को नमन करते हैं और उन गीतों को याद करते हैं जिन्होंने हमारी भावनाओं को जगाया, हमें भक्ति में लीन किया और देश प्रेम से ओत-प्रोत किया।

रफ़ी साहब की आवाज़ में एक ऐसी जादू थी जो हर भावना को जीवंत कर देती थी। चाहे वह प्यार का इज़हार हो, दर्द की दास्तान हो, भक्ति की पुकार हो या देश के प्रति अटूट प्रेम, उनकी गायकी ने हर गीत को एक नया आयाम दिया।


दिलों को छूने वाले सदाबहार गीत


रफ़ी साहब के प्रेम गीत आज भी उतने ही ताज़गी भरे लगते हैं जितने दशकों पहले थे। उनकी आवाज़ में वो दर्द, वो चाहत और वो मासूमियत थी जो सीधे दिल में उतर जाती थी।

"क्या हुआ तेरा वादा, वो कसम वो इरादा..." (फ़िल्म: हम किसी से कम नहीं) - इस गीत में बेवफाई का दर्द और टूटे वादे की टीस रफ़ी साहब ने जिस तरह से बयां की है, वो सुनने वाले की आंखों में नमी ला देती है।

"छू लेने दो नाज़ुक होठों को, कुछ और नहीं है जाम है ये..." (फ़िल्म: काजल) - प्यार और खूबसूरती का ये नज़राना आज भी रूह को सुकून देता है।

"तेरी प्यारी-प्यारी सूरत को किसी की नज़र ना लगे..." (फ़िल्म: ससुरल) - एक मासूम सी मोहब्बत का इज़हार, जो रफ़ी साहब की आवाज़ में और भी गहरा हो गया।


भक्ति और आस्था के स्वर


रफ़ी साहब ने कई ऐसे भक्ति गीत गाए हैं जो आज भी मंदिरों और घरों में गूंजते हैं। उनकी आवाज़ में ईश्वर के प्रति समर्पण और आस्था की वो गहराई थी जो श्रोताओं को भी भक्तिभाव से भर देती थी।

"मन तरपत हरि दरसन को आज..." (फ़िल्म: बैजू बावरा) - यह गीत भगवान के दर्शन के लिए एक प्यासे भक्त की पुकार है, जिसे रफ़ी साहब ने अपनी आवाज़ से अमर कर दिया।

"सुख के सब साथी, दुख में ना कोई..." (फ़िल्म: गोपी) - जीवन के कटु सत्य को दर्शाता यह भजन, रफ़ी साहब की भावपूर्ण गायकी में और भी मार्मिक हो जाता है।

"ओ दुनिया के रखवाले, सुन ले मेरी सदा..." (फ़िल्म: बैजू बावरा) - इस गीत में ईश्वर से प्रार्थना और पुकार की जो तीव्रता है, वह रफ़ी साहब की आवाज़ में जीवंत हो उठती है।


देश प्रेम से ओत-प्रोत गीत


रफ़ी साहब ने कई देशभक्ति गीत भी गाए, जिन्होंने हर भारतीय के दिल में जोश और गौरव भर दिया। उनकी आवाज़ में देश के प्रति सम्मान और प्रेम स्पष्ट झलकता था।

"कर चले हम फिदा जान-ओ-तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों..." (फ़िल्म: हकीकत) - यह गीत हमारे शहीदों को एक भावपूर्ण श्रद्धांजलि है, और रफ़ी साहब की आवाज़ में इसकी हर पंक्ति में देश प्रेम की भावना उमड़ पड़ती है।

"ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का..." (फ़िल्म: नया दौर) - भारत की जीवंत संस्कृति और वीर जवानों की गाथा को बयां करता यह गीत आज भी हर भारतीय को गर्व से भर देता है।


मोहम्मद रफ़ी साहब एक आवाज़ नहीं, एक भावना थे। उनकी विरासत भारतीय संगीत में हमेशा अमर रहेगी। उनकी पुण्यतिथि पर, हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनकी कालातीत धुनों के माध्यम से उन्हें याद करते हैं, जो आज भी हमारे दिलों में गूंजती हैं।


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