विधानसभा चुनाव से पहले बिहार की राजनीतिक बिसात पर कई और चालें देखी जा सकती हैं।

     

क्या नीतीश लालू साथ आ सकते हैं? पढ़ें संभावित पूरी रिपोर्ट।

    बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार की चालें हमेशा अप्रत्याशित रही हैं, और निकट भविष्य में उनके फिर से लालू यादव से हाथ मिलाने की संभावना को पूरी तरह से नकारा नहीं जा सकता, हालांकि फिलहाल इसके आसार कम दिख रहे हैं।

यहाँ कुछ बातें हैं जो इस संभावना को प्रभावित कर सकती हैं:



नीतीश कुमार का लालू यादव के साथ गठबंधन की संभावना


हाल के बयानों में नीतीश कुमार ने कई बार कहा है कि लालू प्रसाद यादव के साथ जाना उनकी एक बड़ी गलती थी और भाजपा उनका "स्वाभाविक मित्र" है। वह बार-बार 2005 से पहले के "जंगल राज" और अपने "सुशासन" के नैरेटिव को दोहराते हैं। इससे लगता है कि वह फिलहाल एनडीए के साथ बने रहना चाहते हैं।

हालांकि, नीतीश कुमार अपनी राजनीतिक रणनीति बदलने के लिए जाने जाते हैं। अतीत में वह कई बार लालू यादव के साथ गठबंधन कर चुके हैं और फिर उसे तोड़ चुके हैं। उनकी प्राथमिकता हमेशा अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता बनाए रखना और मुख्यमंत्री पद पर बने रहना रही है।



पुत्र को राजनीति में लाने और तेजस्वी को सीएम बनाने की बात


यह अटकलें काफी समय से चल रही हैं कि नीतीश कुमार अपने बेटे निशांत कुमार को राजनीति में लाना चाहते हैं। निशांत कुमार खुद भी हाल के समय में कुछ सार्वजनिक बयान देते नजर आए हैं, हालांकि उन्होंने सीधे तौर पर राजनीति में आने की बात नहीं कही है। कुछ नेताओं ने तो निशांत को मुख्यमंत्री बनाने का सुझाव भी दिया है।

यदि नीतीश कुमार अपने बेटे को राजनीति में स्थापित करना चाहते हैं, तो यह संभव है कि वह तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने और अपने बेटे को उपमुख्यमंत्री बनाने जैसे समझौते पर विचार कर सकते हैं। यह एक ऐसी रणनीति हो सकती है जिससे वह अपने बेटे के लिए एक मजबूत राजनीतिक आधार बना सकें और साथ ही अपनी पार्टी की भविष्य की भूमिका भी सुरक्षित कर सकें, खासकर अगर उन्हें लगता है कि जेडीयू भाजपा के साथ रहते हुए कमजोर हो रही है। हालांकि, यह सब केवल अटकलें हैं और इस पर कोई ठोस जानकारी नहीं है।



चिराग पासवान और भाजपा से सतर्कता।

अगर भाजपा अपने हनुमान चिराग को नीतीश की लंका में आग लगाने की दुःसाहस करेंगे तो नीतीश लालू एक हो सकते हैं।



नीतीश कुमार और चिराग पासवान के बीच संबंध हमेशा से तनावपूर्ण रहे हैं। चिराग पासवान ने कई बार नीतीश कुमार की सरकार पर निशाना साधा है, खासकर कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर, यहां तक कि एनडीए का हिस्सा होने के बावजूद भी। 2020 के विधानसभा चुनावों में चिराग पासवान ने जेडीयू के उम्मीदवारों के खिलाफ अपने उम्मीदवार खड़े करके नीतीश कुमार की पार्टी को काफी नुकसान पहुंचाया था।

नीतीश कुमार निश्चित रूप से चिराग पासवान के इस व्यवहार से और भाजपा के साथ उनके संबंधों को लेकर सतर्क रहते होंगे। उन्हें यह डर हो सकता है कि चिराग पासवान का लगातार हमला और भाजपा की चुप्पी, जेडीयू को कमजोर करने की एक रणनीति हो सकती है। ऐसी स्थिति में, अगर उन्हें भाजपा से पर्याप्त समर्थन नहीं मिलता है या उन्हें लगता है कि उनका कद कम हो रहा है, तो वह फिर से गठबंधन बदलने का विकल्प तलाश सकते हैं।

कुल मिलाकर, निकट भविष्य में नीतीश कुमार के लालू यादव से फिर हाथ मिलाने की संभावना पूरी तरह से शून्य नहीं है, लेकिन फिलहाल कम दिख रही है। उनके पिछले बयान एनडीए के साथ रहने की तरफ इशारा कर रहे हैं। हालांकि, बिहार की राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता। अगर उन्हें अपने राजनीतिक भविष्य, अपनी पार्टी और अपने बेटे की राजनीतिक एंट्री के लिए कोई बेहतर विकल्प दिखाई देता है, तो वह कोई भी बड़ा फैसला लेने से हिचकिचाएंगे नहीं।




 

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