खगौल के जगतनारायण लाल कॉलेज: सावन की सरस यात्रा ! प्रसिद्ध यादव।
सावन की फुहारों से भीगता, मनमोहक हरियाली से सराबोर जगतनारायण लाल कॉलेज, खगौल - आज इस कॉलेज में कदम रखते ही ऐसा लगा, मानो मैं साक्षात प्रकृति के आलिंगन में समा गया हूँ। हल्की बूंदाबांदी ने पहले ही मन को भिगो दिया था, और फिर कॉलेज प्रांगण के छायादार वृक्षों और हरे-भरे घास के मैदान ने सहज ही अपनी ओर खींच लिया। यह अनुभव किसी हरी-भरी चादर में लिपटे एक शांत गाँव में घूमने जैसा था, जहाँ हरियाली आँखों को सुकून और मन को शांति देती है।
एक विशाल गेट से अंदर प्रवेश करते ही, गार्ड रूम के बाद गर्ल्स हॉस्टल और फिर विभिन्न विभागों के कार्यालयों से लेकर प्राचार्य का भव्य कक्ष तक, सब कुछ एक सुव्यवस्थित क्रम में था। प्राचार्य महोदया के कक्ष में प्रवेश करते ही, मुझे लगा जैसे मैं इतिहास के पन्नों में गोते लगा रहा हूँ। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, देशरत्न राजेंद्र बाबू, महात्मा बुद्ध, डॉ. कलाम, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसे महापुरुषों की बड़ी-बड़ी तस्वीरें दीवार पर टंगी थीं, जो उनके विराट व्यक्तित्व और अमर स्मृतियों में ले जा रही थीं। यह किसी ज्ञान के मंदिर में प्रवेश करने जैसा था, जहाँ हर तस्वीर एक प्रेरणा स्रोत थी।
हालांकि, डॉ. भीमराव अंबेडकर और ज्योतिबा फुले की तस्वीरें न देखकर मन को थोड़ी निराशा हुई, मानो किसी पूर्ण चित्र से दो महत्वपूर्ण रंग गायब हों। मुझे पूर्ण विश्वास है कि प्राचार्य महोदया इस पर अवश्य ध्यान देंगी और अगली बार जब मैं आऊँगा, तो इन महान विभूतियों की तस्वीरें भी मुझे वहाँ देखने को मिलेंगी।
छोटे भाई, शशिकांत प्रसाद, जो इस कॉलेज में अर्थशास्त्र के विभागाध्यक्ष हैं, मुझे प्राचार्य महोदया और उर्दू के प्रोफेसर दानिश सहित कई अन्य प्रोफेसरों से आत्मीयता से मिलवाया। प्रो. शशिकांत मेरी प्रशंसा में बहुत कुछ कहने लगे, पर मुझे लगा कि मैं तो यहाँ स्वयं कुछ सीखने आया हूँ, मानो एक प्यासा व्यक्ति ज्ञान के सरोवर पर आया हो। उर्दू के प्रो. दानिश जी ने मुझे तुरंत पहचान लिया, हमारी पूर्व मुलाकात वीरेंद्र यादव न्यूज़ के एक कार्यक्रम में हुई थी, जहाँ पत्रकारों को सम्मानित किया गया था और मैं भी उनमें से एक था। प्राचार्य प्रो. डॉ. मधु प्रभा सिंह महोदया अपने कार्य में इतनी तल्लीन थीं, जैसे कोई कुशल कलाकार अपनी कलाकृति में लीन हो। फुर्सत मिलने पर वे मुझसे मुखातिब हुईं, और हमने खगौल की मशहूर गरमा-गरम राजस्थानी जलेबियों का आनंद लिया, जिसने मुलाकात को और भी यादगार बना दिया।
आज इन लोगों के साथ कुछ पल बिताकर एक अद्भुत अपनापन महसूस हुआ, मानो मैं किसी पुराने, बिछड़े हुए परिवार से मिला हूँ। मेरा मन अतीत के 80 के दशक में चला गया, और इस कॉलेज की बदहाली की तस्वीरें मेरी आँखों के सामने घूमने लगीं। करकट के कमरे, खुला मैदान, जानवरों के चारागाह, बिना बाउंड्री के सुरक्षा का अभाव – फिर भी उस समय भी छात्र पढ़ते थे और अच्छे शिक्षक भी थे। सामने अंग्रेजों के जमाने का बादल हाउस, और ठीक बगल में महात्मा गांधी द्वारा स्थापित गांधी उच्च विद्यालय, जहाँ मैं पढ़ता था और अक्सर इस कॉलेज में घूमने आता था। आज कॉलेज के वर्तमान स्वरूप को देखकर मेरा हृदय गदगद हो गया, मानो एक बंजर भूमि अब हरे-भरे बगीचे में बदल गई हो।
कॉलेज में पढ़ाई हो रही है, छात्र पढ़ने आ रहे हैं, यह देखकर मन को अत्यंत संतोष मिला। आर्यभट्ट की ज्ञान भूमि और चाणक्य की तपोभूमि, खगौल, आज इस कॉलेज की बुलंदियों से फूले नहीं समा रहा है, मानो एक छोटा सा बीज अब विशाल वटवृक्ष बन गया हो।
इस यात्रा ने मुझे अतीत और वर्तमान के बीच एक सुंदर सेतु पर चलने का अवसर दिया।

Ye writer ki umar about 50 hoga ,apni bato se dusre ko samay barbad karne bala hoga, apne apko श्रेष्ठ gyani समझता hoga, current affairs se dur sapno me khoya hoga, तथा अपने आपको भारतीय महापुरुषों के सामान समझता होगा।
ReplyDeleteखैर जो लिखा ,बहुत ही अच्छा लिखे है
मेरे अन्य ब्लॉग्स में बहुत करेंट अफेयर्स लिखा हुआ है।इस ब्लॉग में साहित्यिक रूप से लिखा हुआ था जो शायद सभी को समझने की वश की बात नहीं है।
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