तेजस्वी यादव सीएम की पहली पसंद: महागठबंधन को 126 सीटों के साथ बहुमत का आंकड़ा पार कर सकता है।
बिहार में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की संयुक्त यात्राओं को लेकर मीडिया और राजनीतिक विश्लेषकों में अलग-अलग राय है। इन यात्राओं का मकसद आगामी विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन के पक्ष में माहौल बनाना है। मीडिया में सामने आए कुछ सर्वे और विश्लेषणों के आधार पर स्थिति का आकलन इस प्रकार किया जा सकता है:
सर्वेक्षणों के प्रमुख बिंदु
महागठबंधन को बढ़त: कुछ प्रमुख ओपिनियन पोल (जैसे पोल ट्रैकर) के अनुसार, बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में महागठबंधन को बहुमत मिलने की संभावना है। इन सर्वे में महागठबंधन को 126 सीटों के साथ बहुमत का आंकड़ा पार करते हुए दिखाया गया है, जबकि एनडीए को 112 सीटें मिल सकती हैं।
तेजस्वी यादव सीएम की पहली पसंद: कई सर्वेक्षणों में तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे लोकप्रिय चेहरा बनकर उभरे हैं। एक सर्वे के मुताबिक, बिहार के 32.1% मतदाता तेजस्वी यादव को अगले मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं, जबकि 25% लोगों की पसंद नीतीश कुमार हैं।
वोट शेयर: सर्वेक्षणों में महागठबंधन को 44.2% वोट मिलने का अनुमान है, जबकि एनडीए को 42.8% वोट मिल सकते हैं। यह अंतर बहुत कम है, जो चुनाव को बेहद प्रतिस्पर्धी बना सकता है।
यात्रा का प्रभाव और राजनीतिक विश्लेषण
राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की "वोटर अधिकार यात्रा" का उद्देश्य मतदाताओं को एकजुट करना और कुछ प्रमुख मुद्दों को उठाना है:
मुद्दों पर फोकस: यह यात्रा मुख्य रूप से "वोट चोरी" और विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) जैसे मुद्दों पर केंद्रित है, जिसमें लाखों मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से काटे जाने का आरोप लगाया गया है। इस मुद्दे के जरिए विपक्ष बीजेपी और चुनाव आयोग पर हमलावर है।
युवा और दलित मतदाताओं को आकर्षित करना: यात्रा का एक प्रमुख लक्ष्य युवा और दलित मतदाताओं को अपनी ओर खींचना है। बिहार के दलित मतदाताओं के बीच बेरोजगारी को एक बड़ा मुद्दा माना जा रहा है, और महागठबंधन इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश कर रहा है। एक सर्वेक्षण के अनुसार, 58% से अधिक दलित मतदाता बेरोजगारी को सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा मानते हैं।
सीटों पर असर: राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस यात्रा का प्रभाव 25 सीटों पर उलटफेर कर सकता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां वोटर लिस्ट में नाम काटे जाने का मुद्दा ज्यादा प्रभावी है।
कांग्रेस की स्थिति मजबूत करना: राहुल गांधी की सक्रियता को कांग्रेस को बिहार में मजबूत करने की कोशिश के रूप में भी देखा जा रहा है। 2020 के पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा था, जब वह 70 में से केवल 19 सीटें जीत पाई थी। इस यात्रा के माध्यम से कांग्रेस बिहार में अपनी स्थिति सुधारना चाहती है।
क्षेत्रवार स्थिति
शाहाबाद : लोकसभा चुनाव में यह क्षेत्र महागठबंधन के लिए उत्साहजनक था।अगर विधानसभा में इसकी पुनरावृत्ति हो गई तो महागठबंधन सत्ता के शीर्ष पर होगी।
सीमांचल: इस क्षेत्र में राहुल गांधी ने मुसलमानों से सीधे संवाद किया है। सीमांचल में मुस्लिम आबादी का घनत्व अधिक है, और महागठबंधन इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहा है।
मुंगेर: इस क्षेत्र में राहुल गांधी ने अडानी-अंबानी का मुद्दा उठाया, जो उनकी राष्ट्रीय राजनीति का हिस्सा है। विश्लेषकों का मानना है कि राहुल गांधी बिहार के स्थानीय मुद्दों के साथ-साथ अपने राष्ट्रीय एजेंडे को भी आगे बढ़ा रहे हैं।
उत्तर बिहार और मिथिलांचल: इन क्षेत्रों में भी यात्राएं आयोजित की गई हैं।
राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की संयुक्त यात्राओं ने बिहार में चुनावी माहौल को गरमा दिया है। कुछ मीडिया सर्वेक्षणों के अनुसार, महागठबंधन को एनडीए पर हल्की बढ़त मिलती दिख रही है। तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री पद के लिए एक लोकप्रिय उम्मीदवार के रूप में उभरे हैं, और बेरोजगारी व वोटर लिस्ट में नाम काटे जाने जैसे मुद्दों को महागठबंधन जोर-शोर से उठा रहा है, जिसका फायदा उन्हें मिल सकता है।


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