संविधान का 130वां संशोधन विधेयक: एक विवादित कदम !- प्रो प्रसिद्ध कुमार।
भारत में राजनीति और कानून के बीच एक नया टकराव सामने आया है, जिसमें संविधान के 130वें संशोधन विधेयक को लेकर तीखी बहस छिड़ी हुई है। यह विधेयक गंभीर आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे प्रधानमंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को उनके पद से हटाने का प्रस्ताव रखता है। जहां सरकार इसे राजनीतिक शुचिता सुनिश्चित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम बता रही है, वहीं विपक्षी दल इसे लोकतंत्र और संघवाद पर एक बड़ा हमला करार दे रहे हैं।
विधेयक के प्रमुख प्रावधान
यह विधेयक उन मंत्रियों को पद से हटाने का प्रावधान करता है, जिन पर 5 साल या उससे अधिक की सज़ा वाले गंभीर अपराधों का आरोप है और वे लगातार 30 दिनों से हिरासत में हैं। विधेयक के तहत:
प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्री: यदि कोई केंद्रीय मंत्री 30 दिनों तक हिरासत में रहता है, तो राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर उसे पद से हटा सकते हैं।
मुख्यमंत्री और राज्य के मंत्री: यदि कोई राज्य मंत्री 30 दिनों तक हिरासत में रहता है, तो राज्यपाल मुख्यमंत्री की सलाह पर उसे हटा सकते हैं। यदि मुख्यमंत्री 30 दिनों के भीतर सलाह नहीं देते हैं, तो मंत्री का पद स्वतः समाप्त हो जाएगा।
मुख्यमंत्री का पद: यदि मुख्यमंत्री स्वयं 30 दिनों तक हिरासत में रहते हैं, तो उनका पद 31वें दिन स्वतः समाप्त हो जाएगा।
यह विधेयक "दोषी साबित होने तक निर्दोष" के कानूनी सिद्धांत को दरकिनार करता है। यह किसी व्यक्ति को सिर्फ आरोप के आधार पर पद से हटाने की अनुमति देता है, न कि न्यायिक प्रक्रिया पूरी होने के बाद। यही कारण है कि यह विधेयक अपने आप में एक बड़ा बदलाव है।
विरोध के मुख्य कारण
इस विधेयक का विरोध करने वालों में तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस और AIMIM जैसे प्रमुख दल शामिल हैं। उनके विरोध के मुख्य तर्क निम्नलिखित हैं:
राजनीतिक बदले की भावना: विपक्ष का सबसे बड़ा डर यह है कि इस कानून का दुरुपयोग राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को निशाना बनाने के लिए किया जाएगा। उनका मानना है कि केंद्र सरकार केंद्रीय एजेंसियों का उपयोग करके विपक्षी मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों पर झूठे आरोप लगाकर उन्हें जेल में डाल सकती है, जिससे उनकी सरकारें अस्थिर हो जाएंगी।
न्यायपालिका की भूमिका को कमजोर करना: विरोधियों का तर्क है कि यह विधेयक न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप करता है। इसके तहत, किसी व्यक्ति को अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने से पहले ही दंडित किया जा रहा है, जो कानूनी प्रक्रिया के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।
संघवाद पर खतरा: इस विधेयक को राज्यों की स्वायत्तता पर एक सीधा हमला माना जा रहा है। विपक्षी दलों का कहना है कि यह केंद्र सरकार को राज्य सरकारों के कामकाज में अनुचित हस्तक्षेप करने की शक्ति देगा, जिससे देश का संघीय ढांचा कमजोर होगा।
अधिकारों का दुरुपयोग: कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह विधेयक कार्यपालिका को अत्यधिक शक्ति देता है, जिससे देश एक "पुलिस राज्य" में बदल सकता है।
130वां संविधान संशोधन विधेयक एक ऐसा कदम है जो भारतीय राजनीति में पारदर्शिता और शुचिता लाने का दावा करता है। हालाँकि, इसके संभावित दुरुपयोग और कानूनी सिद्धांतों के साथ इसके टकराव को लेकर गंभीर चिंताएँ भी हैं। यह देखना बाकी है कि यह विधेयक कानून का रूप लेता है या नहीं और यदि यह पारित होता है, तो यह भारत के राजनीतिक और कानूनी परिदृश्य को किस तरह प्रभावित करता है।

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