​बाबूचक का काला दिन 27 अगस्त !60 साल बाद फिर ।😢😢-प्रसिद्ध यादव।

   


​बाबूचक गाँव में 27 अगस्त की तारीख जब भी आती, तो गाँव वालों के मन में एक गहरा दर्द उभर आता। यह सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि 60 साल पहले लिखी गई एक दुखद कहानी की याद थी। 27 अगस्त, 1965 को इसी गाँव के लाल जय गोविंद प्रसाद यादव ने जम्मू-कश्मीर की सरहदों पर देश की रक्षा करते हुए अपनी जान कुर्बान कर दी थी। उनकी शहादत की याद आज भी गाँव के हर दिल में ज़िंदा है।

​लेकिन 60 साल बाद, नियति ने फिर से उसी तारीख को गाँव पर एक और कहर ढाया। इस बार, मौत की वजह कोई जंग नहीं, बल्कि इंसान की लापरवाही थी। 27 अगस्त, 2025 को गाँव का माहौल बिलकुल सामान्य था। लेकिन  शाम होते-होते, गाँव में मातम पसर गया। मधु राय के घर से चीख-पुकार की आवाजें आने लगीं। पता चला कि उनके तीन मासूम पोते, आयुष (12), बजरंगी (10), और पंकज (8), खेत में भरे पानी में डूब गए थे।

​गाँव वालों की दौड़-भाग और पुलिस की मदद के बाद जब तीनों बच्चों के शव घर लाए गए, तो पूरे गाँव में कोहराम मच गया। घर के बाहर लोगों की भीड़ जमा हो गई थी, लेकिन सभी की आंखें नम थीं। सुजीत और सोनू कुमार की जिंदगी में तो जैसे अंधेरा छा गया था। अपने बच्चों को एक साथ खोने का दर्द उनके चेहरे पर साफ झलक रहा था।

​इस हादसे का कारण कोई प्राकृतिक आपदा नहीं थी, बल्कि मिट्टी का अवैध खनन था। लालच में लोगों ने खेतों से इतनी मिट्टी खोद डाली थी कि वे गहरे गड्ढों में तब्दील हो गए थे। बारिश के बाद इन गड्ढों में पानी भर गया, जो इन मासूमों के लिए काल बन गया।

​आज भी बाबूचक के लोग उस दिन को याद करके सिहर उठते हैं। 27 अगस्त की तारीख अब उनके लिए दोहरी पीड़ा लेकर आती है - एक तरफ देश के लिए शहीद हुए जय गोविंद प्रसाद यादव का बलिदान और दूसरी तरफ मिट्टी के ढेर में दफन हुई तीन मासूम जिंदगियाँ। यह कहानी हमें बताती है कि कैसे एक तरफ देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया जाता है और दूसरी तरफ छोटी सी लापरवाही कितने बड़े दर्द का कारण बन जाती है।


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