शिक्षा को अनदेखा करती बिहार सरकार: कब जागेगी? -प्रो प्रसिद्ध कुमार।

   


सुप्रीम कोर्ट का एक हालिया फैसला उच्च शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले गुजरात में  संविदा सहायकों के लिए एक बड़ी राहत बनकर आया है। यह निर्णय पूरे देश के लिए मान्य होगा। कोर्ट ने साफ तौर पर कहा है कि संविदा पर काम करने वाले सहायक प्रोफेसर भी स्थायी प्रोफेसरों के समान वेतन के हकदार हैं। यह फैसला सिर्फ एक कानूनी जीत नहीं, बल्कि शिक्षा और शिक्षकों के सम्मान को स्थापित करने वाला एक ऐतिहासिक कदम है।

कोर्ट ने कहा है, "शिक्षकों को सम्मानजनक पारिश्रमिक न देना ज्ञान के महत्व को कम करता है।" यह बात हर उस राज्य सरकार के लिए एक आईना है जो शिक्षा को सिर्फ एक बोझ मानती है, खासकर बिहार सरकार के लिए।

बिहार में वित्तरहित शिक्षक शिक्षकेतर कर्मचारियों की हालात यही है। पटना उच्च न्यायालय में वित्तरहित कर्मचारियों के कुछ कॉलेज के सुनवाई में पटना उच्च न्यायालय ने इनके पक्ष में फैसला सुनाया था लेकिन ,शिक्षा विरोधी सरकार ने अंतिम समय में सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर शिक्षकों व कर्मचारियों के मंसूबों पर पानी फेर दिया।

बिहार का ढुलमुल रवैया

बिहार में उच्च शिक्षा की स्थिति किसी से छुपी नहीं है। सालों से शिक्षक भर्ती अटकी हुई है, और जो शिक्षक काम कर रहे हैं, उन्हें नियमित रूप से वेतन नहीं मिलता। संविदा पर  काम करने वाले व वित्तरहित शिक्षकों की स्थिति तो और भी बदतर है। ये शिक्षक सालों तक कम वेतन और अनिश्चितता के माहौल में काम करने को मजबूर हैं।

जब देश की सबसे बड़ी अदालत यह कह रही है कि 'समान काम के लिए समान वेतन' का सिद्धांत लागू होना चाहिए, तब बिहार सरकार क्यों इस पर ध्यान नहीं दे रही? क्या बिहार के विश्वविद्यालयों में काम करने वाले संविदा शिक्षकों का काम गुजरात या किसी अन्य राज्य के शिक्षकों से कम है?

शिक्षा का महत्व: सिर्फ कागजों पर?

किसी भी राष्ट्र की बौद्धिक रीढ़ उसके शिक्षाविद और प्रोफेसर होते हैं। ये वो लोग हैं जो भविष्य को आकार देते हैं। अगर हम उन्हीं की उपेक्षा करेंगे, तो एक मजबूत और शिक्षित समाज की कल्पना कैसे कर सकते हैं? बिहार सरकार को यह समझना होगा कि शिक्षा पर किया गया निवेश, किसी भी अन्य क्षेत्र में किए गए निवेश से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है।

इस फैसले से बिहार सरकार को सीख लेनी चाहिए। यह सिर्फ एक कानूनी आदेश नहीं, बल्कि एक नैतिक जिम्मेदारी भी है। बिहार सरकार को तुरंत इस दिशा में कदम उठाने चाहिए:

सभी संविदा सहायक प्रोफेसरों को स्थायी प्रोफेसरों के समान वेतन दिया जाए।

शिक्षा के क्षेत्र में लंबित भर्तियों को तुरंत पूरा किया जाए।

शिक्षकों के वेतन और अन्य सुविधाओं को सुनिश्चित किया जाए, ताकि वे बिना किसी आर्थिक चिंता के अपना काम कर सकें।

यह समय है कि बिहार सरकार कागजी वादों से बाहर निकले और शिक्षा के प्रति अपनी गंभीरता को साबित करे। जब तक शिक्षकों को उनका हक नहीं मिलेगा, तब तक एक शिक्षित और समृद्ध बिहार का सपना अधूरा ही रहेगा। क्या सरकार जागेगी, या शिक्षा के भविष्य को इसी तरह अंधकार में धकेला जाता रहेगा?



 

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