बिहार में जमीन की खरीद-बिक्री के निबंधन में जमीन की प्रकृति में हेराफेरी एक गंभीर समस्या !
जिससे राज्य सरकार को राजस्व का भारी नुकसान हो रहा है। भू-माफिया और भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से यह खेल बड़े पैमाने पर चल रहा है। इस पूरी प्रक्रिया में कई स्तरों पर लापरवाही और भ्रष्टाचार देखा जा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप न सिर्फ सरकार को आर्थिक हानि होती है, बल्कि आम नागरिकों और पर्यावरण को भी नुकसान पहुँचता है।
हेराफेरी का तरीका और उसके परिणाम
बिहार में भू-माफिया व्यावसायिक और आवासीय भूमि को कृषि भूमि के रूप में निबंधित कराते हैं। ऐसा करने का मुख्य कारण कृषि भूमि पर स्टाम्प ड्यूटी और निबंधन शुल्क का कम होना है। उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यावसायिक भूमि का वास्तविक मूल्य ₹50 लाख है, तो उस पर लगने वाला शुल्क ₹3.5 लाख या उससे भी अधिक हो सकता है। इसी भूमि को यदि कृषि भूमि के रूप में दिखाया जाए, तो शुल्क काफी कम हो जाता है, जिससे सरकार को प्रति लेन-देन लाखों रुपये का नुकसान होता है।
इस तरह की धोखाधड़ी के कारण केवल राजस्व का नुकसान ही नहीं होता, बल्कि इसके कई अन्य गंभीर परिणाम भी सामने आते हैं:
अवैध कॉलोनियों का विकास: कृषि भूमि पर आवासीय भवन बनाए जाते हैं, जिससे अवैध कॉलोनियाँ विकसित होती हैं। इन कॉलोनियों में सही योजना और नागरिक सुविधाओं की कमी होती है, जो भविष्य में निवासियों के लिए समस्याएँ पैदा करती हैं।
जल निकासी और पर्यावरण की समस्या: खेतों को समतल करने और रास्ते बनाने के लिए आहर और पईन (खेतों के पटवन के लिए बनीं पुरानी जल निकासी प्रणालियाँ) भर दिए जाते हैं। इससे जल निकासी अवरुद्ध हो जाती है, जिससे बरसात के दिनों में जलजमाव की समस्याएँ बढ़ जाती हैं।
नागरिक सुविधाओं का अभाव: ऐसी अवैध कॉलोनियों को अक्सर सरकारी योजनाओं और सुविधाओं से वंचित रहना पड़ता है। हालांकि, रिपोर्ट के अनुसार, कई मामलों में जनप्रतिनिधि इन नई बस्तियों में विकास कार्य तुरंत करवा देते हैं, जबकि पुरानी और वैध बस्तियाँ आज भी उपेक्षित हैं।
प्रशासनिक और विभागीय लापरवाही
इस धोखाधड़ी में प्रशासनिक और विभागीय स्तर पर भी गहरी लापरवाही दिखती है।
निबंधन विभाग: निबंधन अधिकारी (रजिस्ट्रार) जमीन की वास्तविक प्रकृति की जाँच किए बिना ही उसे कम शुल्क पर निबंधित कर देते हैं। इस प्रक्रिया में रिश्वतखोरी की भूमिका स्पष्ट दिखाई देती है।
अंचल अधिकारी (CO): जब जमीन का दाखिल-खारिज (म्यूटेशन) होता है, तब भी अंचल अधिकारी जमीन के उपयोग की जाँच नहीं करते। दाखिल-खारिज की प्रक्रिया में यह जाँच अनिवार्य होती है, लेकिन अधिकांश मामलों में इसे नजरअंदाज कर दिया जाता है।
बिजली विभाग: बिजली विभाग भी बिना जमीन की प्रकृति की जाँच किए कृषि भूमि पर बने आवासीय भवनों को घरेलू बिजली कनेक्शन दे देता है। यह नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है।
समाधान के लिए सुझाव
इस समस्या से निपटने के लिए कई कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है:
समीक्षा और सत्यापन: निबंधन से पहले और बाद में जमीन की प्रकृति का भौतिक सत्यापन अनिवार्य किया जाए। इसके लिए एक संयुक्त टीम (राजस्व, निबंधन और नगर नियोजन विभाग) बनाई जा सकती है।
सख्त कार्रवाई: धोखाधड़ी में शामिल भू-माफिया और भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए।
तकनीकी हस्तक्षेप: डिजिटल मैप्स और ड्रोन सर्वे का उपयोग कर जमीन की प्रकृति और उसके उपयोग की लगातार निगरानी की जाए। इससे अवैध निर्माणों और प्रकृति में बदलाव को समय पर पकड़ा जा सकता है।
जागरूकता: आम नागरिकों को जमीन खरीदने से पहले उसकी कानूनी स्थिति और प्रकृति की जाँच करने के बारे में जागरूक किया जाए।
ये उपाय न सिर्फ सरकार के राजस्व को बढ़ाएंगे, बल्कि शहरीकरण को अधिक नियोजित और पर्यावरण के अनुकूल बनाने में भी मदद करेंगे।

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