बिहार से रोजगार के लिए पलायन: एक गंभीर समस्या !- प्रो प्रसिद्ध कुमार, अर्थशास्त्र विभाग।
बिहार, एक ऐसा राज्य जहाँ की धरती उपजाऊ है, लोग मेहनती हैं और जहाँ का इतिहास गौरवशाली है। लेकिन आज इस राज्य की पहचान एक 'श्रम आपूर्ति राज्य' के रूप में हो गई है। बिहार से रोज़गार के लिए पलायन एक ऐसी गंभीर समस्या है जो विकास के सभी दावों की पोल खोल देती है।
बदहाल बिहार: विकास के दावों की हकीकत
जब भी कोई दिल्ली, मुंबई या पंजाब की ओर जाने वाली ट्रेन को देखता है, तो उसकी सामान्य बोगी में जानवरों की तरह ठसाठस भरे हुए मजदूर दिखते हैं। ये मजदूर कोई और नहीं, बल्कि हमारे ही बिहारी भाई हैं, जो अपने घर से दूर, दूसरे राज्यों में सम्मानजनक जीवन और दो वक़्त की रोटी की तलाश में जा रहे हैं।
सरकारें बड़े-बड़े दावे करती हैं, विकास की गंगा बहाने की बात करती हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। खेतों में मुनाफा घट रहा है, और नक़द आमदनी का कोई जरिया नहीं है। नतीजतन, लोग अपने परिवार को पालने के लिए दूसरे राज्यों में जाने को मजबूर हैं।
पलायन के प्रमुख कारण
रोजगार के अवसरों की कमी: बिहार में औद्योगीकरण की कमी के कारण रोजगार के पर्याप्त अवसर नहीं हैं। बड़े कारखाने और उद्योग न होने के कारण यहाँ के युवा अपनी मेहनत और हुनर का सही इस्तेमाल नहीं कर पाते।
खराब बुनियादी ढांचा: शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी भी एक बड़ा कारण है। बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए भी लोग पलायन करते हैं।
गरीबी: गरीबी का दुष्चक्र लोगों को अपने गाँव और परिवार से दूर जाने के लिए मजबूर करता है।
भयावह स्थिति-
ई-श्रम पोर्टल के आंकड़े तो सिर्फ एक झलक हैं। पोर्टल पर पंजीकृत 2.9 करोड़ से भी अधिक श्रमिक बिहार से पलायन कर चुके हैं। जानकारों का मानना है कि यह संख्या इससे कहीं ज़्यादा है, क्योंकि बहुत से मजदूर तो पंजीकृत ही नहीं हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल लगभग 50 लाख लोग रोज़गार की तलाश में अपना राज्य छोड़ देते हैं। ये आंकड़े सिर्फ संख्याएँ नहीं, बल्कि हर एक संख्या के पीछे एक कहानी है, एक परिवार की मजबूरी है, और एक राज्य की विफलता है।
समाधान की दिशा में
पलायन की इस समस्या को रोकने के लिए सरकार को न केवल बातें करनी होंगी, बल्कि ठोस कदम उठाने होंगे। औद्योगीकरण को बढ़ावा देना, कृषि क्षेत्र में सुधार, और बुनियादी ढाँचे का विकास जैसे कदम उठाने होंगे। जब तक बिहार में ही रोजगार के पर्याप्त अवसर नहीं होंगे, तब तक यह समस्या बनी रहेगी।
यह सिर्फ आर्थिक समस्या नहीं है, बल्कि एक सामाजिक और मानवीय त्रासदी भी है। पलायन करने वाला हर व्यक्ति अपने साथ न सिर्फ अपनी उम्मीदें लेकर जाता है, बल्कि अपने गाँव की प्रगति को भी पीछे छोड़ जाता है। बिहार को इस दुष्चक्र से बाहर निकालने के लिए हमें सबको मिलकर सोचना होगा और काम करना होगा।

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