दुखद दास्ताँ: बाबूचक का वो मनहूस दिन!
अंतिम पायदान के मुशहर समाज के दीपक मांझी ,साधु मांझी और श्री भगवान मांझी विकट स्थिति में डटे रहे!
बाबूचक गाँव, 27 अगस्त, 2025। दिन सामान्य था, सूरज अपनी दिनचर्या पूरी कर ढल रहा था। शाम होते-होते, गाँव में एक भयानक मातम पसर गया। मधु राय के घर से आती चीख-पुकार ने पूरे गाँव को हिलाकर रख दिया। हर कोई बदहवास होकर उस ओर दौड़ा। पता चला कि उनके तीन मासूम पोते—आयुष (12), बजरंगी (10), और पंकज (8)—खेत में भरे पानी के एक गहरे गड्ढे में डूब गए थे।
बच्चों को ढूंढने की जद्दोजहद शुरू हुई। गाँव के लोग, पुलिस, हर कोई कोशिश में लगा था। कुछ ने हिम्मत करके पानी में छलांग भी लगाई, पर 15 फुट गहरे गड्ढे में अंधेरा और पानी का दबाव उन्हें वापस लौटने पर मजबूर कर रहा था। चारों ओर मायूसी छा गई थी, जब तक कि दो नाम सामने नहीं आए: साधु मांझी और श्री भगवान मांझी।
ये दोनों, पास के ही गोरगावा बड़ी मुशहरी के निवासी थे। समाज की नजरों में भले ही वे 'अंतिम पायदान' पर खड़े थे, फटेहाल जीवन जीने को मजबूर, पर उनके अंदर का जज्बा और हिम्मत किसी से कम नहीं थी। बिना कुछ सोचे, रात के अंधेरे और गहरे पानी की परवाह किए बिना, वे उस 15 फुट गहरे गड्ढे में कूदे और तीनों मासूमों के शवों को बाहर निकाला। यह एक ऐसा अदम्य साहस था कि अच्छे-अच्छे लोग बस देखते रह गए। उनकी यह बहादुरी शब्दों से परे थी।
लाशों के मिलने के बाद भी, मुशहर समुदाय की इंसानियत कम नहीं हुई। उसी समुदाय के जिला पार्षद , दीपक मांझी, पूरी मुस्तैदी से पीड़ित परिवार के साथ डटे रहे। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि डूबे हुए बच्चों को तुरंत पटना एम्स ले जाया जाए। वहाँ से शवों को घर लाया गया, फिर पोस्टमार्टम के लिए दानापुर और आखिरकार अंतिम संस्कार के लिए दीघा घाट तक वे परिवार के साथ साये की तरह रहे। जो होना था, उसे कोई टाल नहीं पाया, लेकिन इस दुख की घड़ी में मुशहर परिवार का पल-पल साथ देना बहुत कुछ कहता है।
इस हादसे का कारण कोई प्राकृतिक आपदा नहीं थी, बल्कि इंसान की लालच थी। अवैध खनन ने खेतों को गहरे गड्ढों में तब्दील कर दिया था। बारिश के पानी से भरे ये गड्ढे तीन मासूमों के लिए काल बन गए। आज भी, बाबूचक के लोग उस दिन को याद करके सिहर उठते हैं। यह एक ऐसी घटना थी जिसने 1970 के बाद एक ही समय में तीन लोगों को खोने का दर्द दिया। 1970 में भी इस गांव में आपसी रंजिश में तीन हत्याएं हुई थी। इसके बाद 2025 में गांव से एक ही घर के तीन शव निकलना पीड़ादायक है।
सुजीत और सोनू कुमार की जिंदगी में तो जैसे अंधेरा छा गया था। अपने बच्चों को एक साथ खोने का दर्द उनके चेहरे पर साफ झलक रहा था। मधु राय के घर के बाहर लोगों की भीड़ जमा थी, हर आँख नम थी। यह घटना बाबूचक के इतिहास में एक ऐसा काला अध्याय बन गई है, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।
शोकाकुल परिवार को सांत्वना देने के लिए राजनीतिक दलों के नेताओं से लेकर कार्यकर्ता आ रहे हैं। राजद नेता ध्रुव ,हरिनारायण यादव ,अरुण यादव, दिनेश रजक ,माले नेता साधुशरण ,गुरुदेव दास ,भाजपा नेता, सनोज यादव सहित अन्य लोग आये थे।


Comments
Post a Comment