​मनुष्य का धर्म: अच्छा संवाद !-प्रो प्रसिद्ध कुमार।

   

यह पोस्ट उन पढ़े लिखे लोगों के लिए ही ज्यादा है, जो ऊंचे ओहदे पर होते हुए एक दूसरे से बदतजमी से बात करते हैं, व्यवहार करते हैं। ऐसे लोगों को अक्ल कभी आने वाला नही है। 


​आज की दुनिया में, जहाँ हर कोई अपने विचार व्यक्त करना चाहता है, संवाद का महत्व और भी बढ़ गया है। लेकिन क्या हम सही तरीके से संवाद कर रहे हैं?

​सोशल मीडिया पर अक्सर हम देखते हैं कि लोग अपने निजी जीवन से जुड़ी बातें इस तरह शेयर करते हैं, जो दूसरों के लिए आपत्तिजनक या अपमानजनक हो सकती हैं। यह वह संवाद नहीं है, जिसकी हमें ज़रूरत है।

​पुराने समय में, जब अख़बारों और पत्रिकाओं में कार्टून, व्यंग्य और चुटकुले छपते थे, वे न सिर्फ़ हास्य पैदा करते थे, बल्कि परिवार और समाज से जुड़े होते थे। उनका मक़सद किसी को ठेस पहुँचाना नहीं, बल्कि चेहरे पर मुस्कान लाना था। प्रिंट मीडिया आज भी इस धर्म का पालन कर रहा है।

​आइए, संवाद के कुछ उदाहरणों से समझते हैं कि अच्छा संवाद क्या होता है:

​व्यक्तिगत बातचीत: मान लीजिए, आपके दोस्त ने एक ग़लती की है। आप उसे सबके सामने शर्मिंदा करने के बजाय अकेले में समझाते हैं। यह संवाद का सही तरीक़ा है, जहाँ आप अपनी बात भी कह पाते हैं और सामने वाले की गरिमा भी बनी रहती है।

​परिवार में संवाद: परिवार में जब कोई बड़ा आपसे किसी विषय पर बात करता है, तो वह डाँटने की बजाय समझाने की कोशिश करता है। जैसे, "बेटा, मुझे लगता है कि इस तरह से करने से तुम्हें ज़्यादा फ़ायदा होगा।" यह न केवल आपको सही राह दिखाता है, बल्कि रिश्ते को भी मज़बूत करता है।

​सोशल मीडिया पर: किसी पोस्ट पर प्रतिक्रिया देते समय, अगर आप असहमति जताते भी हैं, तो आप "मुझे आपकी राय से अलग राय है, और मेरा मानना है कि..." जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर सकते हैं। यह आक्रामक होने के बजाय एक सभ्य तरीक़ा है।

​संवाद का असली मक़सद अपनी बात को सही ढंग से कहना है, बिना किसी को ठेस पहुँचाए। सोशल मीडिया पर बे-सिर-पैर की सामग्री परोसने के बजाय, हमें इसका उपयोग समाज को सही दिशा देने और तनाव को कम करने के लिए करना चाहिए। यही मनुष्य का धर्म है।


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