बाबूचक में सूर्योदय एक सन्नाटा व मातम के साथ हुआ !-प्रसिद्ध यादव।😢😢 फॉलो अप ख़बर।
सूर्य का उदय तो आज भी बाबूचक में हुआ, लेकिन एक सन्नाटा और मातम लिए हुए। प्रतिदिन मंदिर में गूंजने वाला लाउडस्पीकर भी खामोश था और मंदिर की घंटियों की आवाज़ भी नहीं सुनाई दी। पूरे गांव में सिर्फ एक ही चर्चा थी, और वो थी तीन मासूमों की असमय मृत्यु।
मधु राय, जिन्होंने अपनी आँखों के सामने अपने कलेजे के टुकड़ों को खो दिया था, रात में ही अपने हाथों से तीनों पोतों के शवों को गंगा में प्रवाहित कर घर लौटे थे। घर तो वही था, लेकिन बच्चों की चहचहाहट और खिलखिलाहट की जगह एक गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था।
सफेद धोती और उतरी पहने, हाथ में चाकू लिए मधु राय अपने घर के आगे नित्य दिन की तरह गाय-भैंसों को चारा डलवा रहे थे। उनके चेहरे पर दुख की कोई लहर नहीं थी, मानो उन्होंने अपने कलेजे को पत्थर कर लिया हो। पोतों के वियोग में उनकी आँखें पथरा गई थीं, और आँसू भी गायब हो गए थे। शायद इस गहरे सदमे ने उनके भीतर के हर भाव को सुन्न कर दिया था।
सगे-संबंधी और ग्रामीण उन्हें ढांढस बंधा रहे थे, लेकिन शायद इसकी भी ज़रूरत नहीं थी। मधु राय का दर्द इतना गहरा था कि कोई भी सांत्वना उसे कम नहीं कर सकती थी।
यह हादसा सिर्फ एक परिवार का दर्द नहीं, बल्कि पूरे समाज की लापरवाही का नतीजा है। जिन भू-माफियाओं ने अवैध रूप से मिट्टी काटकर तालाब बना दिया था, वो ज़मीन पटना-बक्सर फोरलेन के लिए अधिग्रहित गोरगांवा की थी। यह ज़मीन अब किसानों की रही ही नहीं, फिर भी सरकार को इसकी सुध नहीं है कि कौन ज़मीन की मिट्टी काट रहा है और कौन बेच रहा है। पुलिस प्रशासन भी सिर्फ वसूली में लगा हुआ है।
यह घटना एक सबक है, जो हमें याद दिलाती है कि अवैध खनन का लालच किस हद तक खतरनाक हो सकता है। यह सिर्फ एक हादसा नहीं था, बल्कि इंसान की लापरवाही और लालच का नतीजा था, जिसने तीन मासूमों की जान ले ली। अब देखना यह है कि क्या इस घटना के बाद सरकार दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करती है या फिर किसी और घटना का इंतज़ार करती रहती है।
क्या आपको लगता है कि इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए सरकार को और सख्त कदम उठाने चाहिए?


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