जब शिक्षा के मंदिरों में लगे दीमक ! प्रो प्रसिद्ध कुमार।
बिहार राज्य के 216 संबद्ध डिग्री कॉलेजों में हुआ खुलासा !
शिक्षा, किसी भी समाज की रीढ़ होती है, और शिक्षण संस्थान उसके मंदिर। लेकिन क्या हो जब इन मंदिरों की आंतरिक व्यवस्था में ही दीमक लग जाए? जब उन संस्थानों के प्रबंधन से ही पारदर्शिता और ईमानदारी गायब हो जाए, तो इसका खामियाजा किसे भुगतना पड़ता है?
हाल ही में, बिहार राज्य के 216 संबद्ध डिग्री कॉलेजों में हुआ यह खुलासा इसी बात का ज्वलंत उदाहरण है। इन कॉलेजों ने अपनी आंतरिक आय की राशि में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि बिहार सरकार के स्पष्ट आदेश के बावजूद, इन कॉलेजों ने अपनी आंतरिक आय का 70% हिस्सा शिक्षकों और कर्मचारियों के वेतन भुगतान पर खर्च नहीं किया।
यह सिर्फ पैसों के लेन-देन की बात नहीं है, यह उस भरोसे की बात है जो एक व्यवस्था पर टिका होता है। जब कॉलेज अपनी आंतरिक आय को छिपाते हैं या उसका दुरुपयोग करते हैं, तो वे न केवल अपने शिक्षकों और कर्मचारियों के साथ अन्याय कर रहे होते हैं, बल्कि वे उन छात्रों के भविष्य को भी खतरे में डाल रहे होते हैं, जो इन संस्थानों में एक बेहतर कल की उम्मीद लिए आते हैं।
ऑडिट में हर चीज स्पष्ट दिखाई देती है
यह कहावत बिलकुल सही है कि ऑडिट में हर चीज स्पष्ट दिखाई देती है। जब सरकार या शिक्षा विभाग द्वारा इन कॉलेजों के खातों की जांच की गई, तो यह गंभीर वित्तीय गड़बड़ी सामने आई। यह दर्शाता है कि पारदर्शिता और नियमित ऑडिट कितना महत्वपूर्ण है। अगर समय पर ऑडिट न हो, तो इस तरह की वित्तीय अनियमितताएँ वर्षों तक चलती रह सकती हैं, और इसका पता लगाना मुश्किल हो जाता है।
इस गड़बड़ी का सीधा परिणाम सरकारी अनुदान में व्यवधान के रूप में सामने आया है। खबर के अनुसार, सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2025-26 में परीक्षाफल आधारित संबंधित महाविद्यालयों को दी जाने वाली अनुदान की राशि पर रोक लगाने का फैसला किया है। यह एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। जब एक संस्थान अपनी ही आय का सही प्रबंधन नहीं कर सकता, तो सरकार उस पर भरोसा कैसे कर सकती है और उसे और अधिक पैसा क्यों देना चाहिए?
भुक्तभोगी कौन?
इस पूरे मामले में सबसे बड़ा नुकसान पूरे कॉलेज परिवार का होता है। इसमें सिर्फ प्रबंधन ही नहीं, बल्कि ईमानदार शिक्षक, मेहनती कर्मचारी और सबसे महत्वपूर्ण, छात्र भी शामिल हैं। जब सरकारी अनुदान रुक जाता है, तो विकास कार्य बाधित होते हैं, शिक्षण व्यवस्था पर असर पड़ता है, और अंततः इसका खामियाजा छात्रों को भुगतना पड़ता है। उन्हें शायद बेहतर लाइब्रेरी, आधुनिक प्रयोगशालाएँ या अन्य आवश्यक सुविधाओं से वंचित रहना पड़ता है। शिक्षकों और कर्मचारियों को भी वेतन और भत्तों के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है।
शिक्षा विभाग ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए संबंधित महाविद्यालयों के खिलाफ सख्ती दिखाई है और उनसे स्पष्टीकरण मांगा है। यह एक स्वागत योग्य कदम है। लेकिन सिर्फ स्पष्टीकरण मांगना ही काफी नहीं है। सख्त कार्रवाई की जरूरत है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
यह घटना हम सभी के लिए एक चेतावनी है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे शिक्षण संस्थानों का प्रबंधन पारदर्शी और जवाबदेह हो। अगर हमें अपने शिक्षा व्यवस्था पर भरोसा बनाए रखना है, तो हमें उन दीमकों को जड़ से खत्म करना होगा जो इसकी नींव को खोखला कर रहे हैं। शिक्षा के मंदिरों को राजनीति और भ्रष्टाचार से मुक्त रखना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।

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