आधुनिकता का दिखावा और कबीर का सत्य!

   



आज की दुनिया में, जहाँ हर कोई अपने जीवन को सोशल मीडिया और बाहरी दिखावे की चमकदार दुनिया में कैद कर रहा है, वहाँ अक्सर हम अपने भीतर के सत्य से दूर हो जाते हैं।  "अगर दुनिया सच को दबाकर केवल दिखावे पर टिकी रहे, तो यह सभ्यता बिखर जाएगी।" यह एक गहरी सच्चाई है जो हमें आत्म-मंथन करने के लिए मजबूर करती है।

हमारे समाज में दिखावे की चमक इतनी बढ़ गई है कि हम अक्सर भूल जाते हैं कि जीवन और समाज की असली सुंदरता, , आत्मीयता, सत्य और सादगी में निहित है। जब हम दिखावे की इस दुनिया में गहराई से देखते हैं, तो हमारी आत्मा सचमुच कांप जाती है। यह एक खालीपन का एहसास है, जो हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या यह दिखावा ही सब कुछ है?

यह विचार कबीर दास जी की वाणियों से बहुत मेल खाता है, जिन्होंने हमेशा सादगी और आंतरिक सच्चाई पर जोर दिया। कबीर कहते हैं:

"पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।"

जिस तरह कबीर ज्ञान के दिखावे की बजाय प्रेम के ढाई अक्षरों को पढ़ने पर जोर देते हैं, उसी तरह आज हमें बाहरी चमक-दमक के बजाय जीवन की सादगी और आत्मीयता को अपनाना चाहिए। कबीर ने हमेशा बाहरी आडंबरों को नकार कर, मन की शुद्धि और सच्चाई को महत्व दिया।

इस आधुनिक युग में, हमें कबीर की इस शिक्षा को याद रखना चाहिए। दिखावा हमें क्षणिक खुशी दे सकता है, लेकिन सच्ची शांति और आनंद तो हमारे भीतर के सत्य और सादगी में ही छिपा है। जिस तरह कबीर ने प्रेम और सच्चाई के मार्ग पर चलने का संदेश दिया, उसी तरह हमें भी दिखावे की दुनिया से हटकर अपने वास्तविक मूल्यों की ओर लौटना चाहिए।

तभी हमारा जीवन और समाज सच्चे अर्थों में सुंदर और समृद्ध बन पाएगा।



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