बाबूचक का दशहरा: जहाँ नाच उठी 'खांटी' लोक-संस्कृति!प्रो - प्रसिद्ध कुमार।
पटना जिले के फुलवारी शरीफ में एक ऐसी जगह है, जहाँ हर साल दशहरे की सप्तमी की रात ढलते ही, गाँव की मिट्टी की महक संगीत बनकर हवा में घुल जाती है—यह जगह है बाबूचक।
इस वर्ष भी, बाबूचक में दशहरा की सप्तमी तिथि को पूरी रात एक ऐसा भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित हुआ, जो आजकल के शोरगुल से अलग, अपनी 'खांटी' (शुद्ध) और सोंधी लोक-संस्कृति के लिए जाना जाता है।
संगीत, सुर और मिट्टी की खुशबू
यह महज़ कोई कार्यक्रम नहीं था; यह था हमारी जड़ों से जुड़ने का एक उत्सव!
जब मुख्य गायक रामजी राय ने अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा, और उनके साथ प्रदीप कुमार, अर्जुन राय, सोहन लाल और अन्य कलाकारों ने सुर मिलाए, तो पंडाल में मौजूद हज़ारों दर्शक झूम उठे।
पूरा समाँ पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन से बंध गया। नाल पर अरुण कुमार और पप्पू पंडित की संगत ने ऐसी ताल दी कि पैर थिरकने लगे। वहीं, हारमोनियम पर सूत्रधार नाट्य संस्था के भोला सिंह ने अपनी उँगलियों का जादू बिखेर कर महफ़िल को एक नई ऊँचाई दी।
भक्ति और लोक-गीतों का ऐसा अद्भुत संगम था कि दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए। जब गायक ने गाया, "कौन रासिकवा देवी के मनावले ये राम!" या "नहीं बाटे नरियर चुंदरी..." तो पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठा। और जब "दुर्गा है मेरी माँ..." जैसे गीत गूँजे, तो हर आँख में श्रद्धा का भाव झलक उठा।
अटूट परंपरा और नारी शक्ति की भागीदारी
यह आयोजन क्यों इतना खास है? क्योंकि यह महज़ एक दिन का जश्न नहीं है। यह बाबूचक की अटूट सांस्कृतिक परंपरा का प्रतीक है, जो साल 1998 से लगातार हर दशहरे की सप्तमी को आयोजित होता आ रहा है।
इस साल की एक ख़ास बात रही महिलाओं की बड़ी संख्या में भागीदारी। वे गीत सुनकर भाव-विभोर थीं—जो दर्शाता है कि हमारी लोक-संस्कृति आज भी गाँव-देहात की आत्मा में किस क़दर बसी हुई है।
कार्यक्रम की व्यवस्था प्रो प्रसिद्ध कुमार, जिला पार्षद दीपक मांझी, बाला जी, पंकज, दिनेश कुमार , मोहन मंडल ,सतेंद्र प्रसाद , गोपाल राय , बसन्त कुमार ,संजू कुमार ,उपेंद्र कुमार और उनकी टीम ने शानदार ढंग से संभाली, जिससे यह आयोजन बिना किसी रुकावट के पूरी रात चलता रहा। कार्यक्रम का प्रारंभ भी बेहद सम्मानजनक तरीक़े से हुआ, जिसमें मुख्य कलाकारों को अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया गया।
बाबूचक का यह कार्यक्रम सचमुच एक अद्भुत अनुभव है—यह याद दिलाता है कि भले ही दुनिया कितनी भी आधुनिक हो जाए, हमारी सच्ची संस्कृति की मिठास हमेशा हमारे दिल में रहेगी।




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