विश्वास की महिमा: एक साहित्यिक विवेचन !-प्रो प्रसिद्ध कुमार।
विश्वास, वह अदृश्य शक्ति है जो मनुष्य को कठिन से कठिन परिस्थितियों का सामना करने का साहस देती है। विश्वास इतना शक्तिशाली होता है कि इंसान उसके भरोसे ऊंचे पहाड़ की चढ़ाई भी कर लेता है। यह केवल बाहरी जगत में दिखने वाली दृढ़ता नहीं, बल्कि हमारे अंतर्मन में पनपने वाला एक आंतरिक खेल है। जब हम स्वयं पर या दूसरों पर विश्वास करते हैं, तो हमारे लिए असंभव से लगने वाले कार्य भी संभव हो जाते हैं। यह विश्वास ही है जो एक बीज को विशाल वृक्ष बनने का स्वप्न देता है और एक नन्ही सी चींटी को पहाड़ चढ़ने की हिम्मत देता है। विश्वास हमारे मन की बनाई दुनिया है, जिसकी शक्तियां सच में अद्भुत हैं।
कबीर और विश्वास का मर्म
संत कबीर दास ने भी विश्वास के इसी मर्म को अपनी वाणियों में गहराई से व्यक्त किया है। उनका एक प्रसिद्ध दोहा है, "जाको राखे साईयां मार सके ना कोई।" इसके अलावा, विश्वास की इसी अवधारणा को और अधिक सरल बनाते हुए वे कहते हैं, "मोको कहाँ ढूंढे रे बंदे, मैं तो तेरे पास में।" यहाँ 'मैं' ईश्वर के लिए प्रयुक्त हुआ है, और कबीर यह समझाते हैं कि ईश्वर को मंदिर, मस्जिद या किसी बाहरी स्थान पर खोजने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वह तो हमारे भीतर ही हमारे विश्वास के रूप में विद्यमान है। यह विश्वास ही हमें ईश्वर के करीब लाता है और जीवन के हर पड़ाव पर हमारा मार्गदर्शन करता है।
अविश्वास: बिखराव का कारण
जहाँ विश्वास जीवन को जोड़ता है, वहीं अविश्वास उसे तोड़ता है। जब विश्वास की डोर कमजोर पड़ती है, तो सबसे मजबूत रिश्ते भी बिखर जाते हैं। परिवारों में अविश्वास की खाई पैदा होते ही प्रेम और सम्मान का सेतु टूट जाता है। पति-पत्नी, भाई-बहन और माता-पिता के बीच पनपा अविश्वास घर को सिर्फ एक इमारत बना देता है, जहाँ लोग साथ रहते तो हैं, पर मन से अलग होते हैं। इसी तरह, समाज और राष्ट्रों के बीच जब अविश्वास बढ़ता है, तो सहयोग और सौहार्द का स्थान संदेह, संघर्ष और अलगाव ले लेता है। अविश्वास एक ऐसी दीमक है जो न केवल रिश्तों को, बल्कि समाज की बुनियाद को भी खोखला कर देती है।
अतः, यह स्पष्ट है कि विश्वास जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है, जो हमें न केवल स्वयं से, बल्कि दूसरों से और प्रकृति से भी जोड़ती है। यह हमें साहस, शक्ति और संतोष प्रदान करती है, जबकि अविश्वास सिर्फ दुख, अकेलापन और विघटन लाता है।
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