पंख दो, उड़ान भरने दो! (Give them wings, let them fly!)- प्रो प्रसिद्ध कुमार।

   


​भारतीय समाज में सदियों से बेटियों को घर की लक्ष्मी और परिवार का गौरव माना गया है। लेकिन, विडंबना यह है कि इसी समाज का एक हिस्सा बेटियों की सुरक्षा का अर्थ जल्द विवाह से लगाता है। यह सोच एक गहरी जड़ वाली असुरक्षा को जन्म देती है, जो बेटियों के सपनों और उनके वास्तविक सामर्थ्य को कुचल देती है।

​सही मायने में सुरक्षा का अर्थ विवाह नहीं, बल्कि सशक्तिकरण है। एक बेटी तब सुरक्षित महसूस करती है, जब उसे शिक्षा के पंख मिलते हैं। जब वह पढ़-लिखकर आत्मनिर्भर बनती है, अपने फैसले खुद लेने में सक्षम होती है, और जीवन की चुनौतियों का सामना अपने दम पर कर सकती है। असली सुरक्षा उसे अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाती है, न कि किसी और के सहारे जीना।

​बाल विवाह सिर्फ एक सामाजिक कुप्रथा नहीं, बल्कि हर बेटी के अधिकारों का हनन है। यह उसके बचपन को छीन लेता है, उसकी शिक्षा को बाधित करता है, और उसे एक स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में विकसित होने से रोकता है। इस समस्या से लड़ना केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह हर माता-पिता, हर परिवार और समाज के हर व्यक्ति का नैतिक दायित्व है।

​हमें अपनी सोच को बदलना होगा। बेटियों को बोझ नहीं, बल्कि परिवार और देश के विकास का आधार मानना होगा। उन्हें अवसर देने होंगे ताकि वे अपनी क्षमताओं को पहचान सकें और अपने सपनों को साकार कर सकें।

​आइये, हम सब मिलकर एक ऐसा समाज बनाएँ जहाँ बेटियों को विवाह के लिए नहीं, बल्कि उड़ने के लिए तैयार किया जाए। उन्हें पंख दें, उड़ान भरने दें, क्योंकि जब एक बेटी सशक्त होती है, तो पूरा समाज सशक्त होता है।

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