हरा सोना ( Green Gold ) है बांस !
भागलपुर (टीएनबी कॉलेज परिसर में देश का पहला बंबू टिशू कल्चर लैब है)।
बांस को 'हरा सोना' (Green Gold) कहा जाता है क्योंकि यह कई मायनों में बहुत मूल्यवान है। यह बहुत तेजी से बढ़ता है, और इसे उगाना आसान है। यह एक टिकाऊ संसाधन है जो वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
बांस की उपयोगिता:
छवि और उपलब्ध जानकारी के अनुसार, बांस के कई उपयोग हैं:
उत्पादों का निर्माण: कप, प्लेट, टूथब्रश, कंघे, और कूड़ेदान जैसे दैनिक उपयोग की वस्तुओं को बनाने में इसका इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है।
फर्नीचर और सजावट: बल्ली, सीढ़ी, टोकरी, चटाई, और विभिन्न प्रकार के फर्नीचर बनाने में इसका उपयोग होता है।
औद्योगिक उपयोग: बांस का उपयोग कपड़ा उद्योग, कागज बनाने, अगरबत्ती, पेंसिल, माचिस और हस्तशिल्प में भी होता है।
कृषि और निर्माण: कृषि यंत्र और भूकंप-रोधी घर बनाने में भी इसका उपयोग किया जाता है।
औषधीय गुण: बांस की कोंपल (बांस के अंकुर) और पत्तियों में औषधीय गुण होते हैं। इनका उपयोग मधुमेह, हृदय रोग, और सांस की बीमारियों में किया जाता है।
पर्यावरण के लिए लाभकारी: बांस प्राकृतिक रूप से जीवाणुरोधी होता है, और यह हवा को शुद्ध करने में भी सहायक है।
बिहार में बांस की खेती की प्रमुखता:
बिहार में राष्ट्रीय बांस मिशन के तहत बांस की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। सरकार किसानों को इस खेती के लिए सब्सिडी भी दे रही है। बिहार के कई जिलों में इसकी खेती होती है, जिनमें प्रमुख हैं:
कटिहार (विशेष रूप से फलका, समेली, बरारी और कुरसेला प्रखंड)
समस्तीपुर
खगड़िया
मुंगेर
बख्तियारपुर
सहरसा
सुपौल
किशनगंज
अररिया
मधेपुरा
पूर्णिया
सीतामढ़ी
शिवहर
बांस की खेती से आय और आंकड़े:
निवेश: बांस की खेती में प्रति हेक्टेयर प्रारंभिक निवेश लगभग ₹50,000 से ₹1,00,000 तक हो सकता है। सरकार इस पर सब्सिडी भी दे रही है।
सरकारी अनुदान: बिहार सरकार बांस की खेती पर प्रति हेक्टेयर ₹60,000 तक का अनुदान दे रही है। यह अनुदान दो किस्तों में मिलता है।
फसल: बांस की फसल लगभग 3-5 साल में तैयार हो जाती है। एक बार लगाने के बाद 40 साल तक इसकी कटाई की जा सकती है।
आय: एक हेक्टेयर से 3-3.5 लाख रुपये तक की कमाई हो सकती है। कटिहार जिले के फलका में बांस का कारोबार सालाना ₹10-12 करोड़ का है।

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