वेतन या टालमटोल? विरहित शिक्षकों को कमिटी के मकड़जाल में उलझाने की सरकारी साजिश! प्रो प्रसिद्ध कुमार Rlsy college, Anisabad.

   



इस नीति के विरोध में मोर्चा ने 03 अक्टूबर 2025 को राज्यव्यापी स्तर पर अधिसूचना की प्रति जलाने का किया  ऐलान ! 

एक बार फिर, बिहार सरकार ने प्रदेश के विरहित शिक्षकों और शिक्षकेतर कर्मचारियों के साथ न सिर्फ क्रूर मज़ाक किया है, बल्कि उनके वर्षों पुराने संघर्ष को टालमटोल की राजनीति में उलझाने की खुली कोशिश की है। इन शिक्षकों को अनुदान या सम्मानजनक वेतन देने के सीधे निर्णय के बजाय, सरकार ने मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक 'समीक्षा समिति' के गठन की घोषणा कर दी है। यह निर्णय नहीं, बल्कि साफ तौर पर आंदोलन की धार को कुंद करने और समस्या को अनिश्चितकाल के लिए टाल देने की एक शर्मनाक साज़िश है।


कमिटी का मतलब: टालना और भूल जाना


क्या सरकार को यह याद दिलाना ज़रूरी है कि 'कमिटी' बनाने का मतलब ही होता है किसी भी संवेदनशील और जटिल मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाल देना? क्या अतीत में बनी अनगिनत कमेटियों का लेखा-जोखा सरकार के पास है? कितने प्रतिशत कमेटियाँ वास्तव में सफल हुई हैं? इतिहास गवाह है कि सरकारी मशीनरी में कमेटियों का गठन अक्सर 'हम काम कर रहे हैं' का भ्रम पैदा करने और ज़मीनी हकीकत से बचने का एक आसान नुस्खा रहा है। 50,000 से अधिक कर्मचारियों के भविष्य को एक गैर-ज़रूरी और समय बर्बाद करने वाली प्रक्रिया के हवाले कर देना न्याय नहीं, अन्याय है।


जब राशि दी, तब कमिटी कहाँ थी?


सरकार की नीयत पर सबसे बड़ा सवाल तब खड़ा होता है जब हम उसकी पिछली कार्रवाई को देखते हैं। हाल ही में जब सरकार ने इन शिक्षण संस्थाओं को अनुदान राशि वितरित की थी, तब क्या कोई कमिटी बनी थी? नहीं! जब राजनीतिक लाभ या त्वरित प्रतिक्रिया की आवश्यकता थी, तब सरकार ने बिना किसी कमिटी की लंबी प्रक्रिया के फैसला लिया। लेकिन, अब जब शिक्षकों के सम्मानजनक वेतन और स्थायी अनुदान जैसे बुनियादी अधिकारों पर निर्णय लेने की बात आई है, तो तुरंत मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कमिटी थोप दी गई है! यह विरोधाभास स्पष्ट करता है कि सरकार की प्राथमिकता शिक्षकों का कल्याण नहीं, बल्कि राजनीतिक दाँव-पेंच और समय खींचने की रणनीति है।


संघर्ष मोर्चा का आक्रोश जायज


विरहित शिक्षक-शिक्षकेतर संयुक्त संघर्ष मोर्चा ने सरकार के इस फैसले को सही ही 'आक्रोश को भड़काने' और आंदोलन पर 'हमला' बताया है। मोर्चा का आरोप है कि यह अधिसूचना उन्हें उलझाने की कोशिश है। मोर्चा की यह मांग बिल्कुल तर्कसंगत है कि कमिटी की अधिसूचना तत्काल वापस ली जाए और वेतन तथा अनुदान पर सीधे निर्णय लिया जाए।

सरकार को यह बात गाँठ बाँध लेनी चाहिए कि 1250 शिक्षण संस्थानों के करीब 50,000 कर्मचारियों का धैर्य अब जवाब दे चुका है। टालमटोल की इस नीति के विरोध में मोर्चा ने 03 अक्टूबर 2025 को राज्यव्यापी स्तर पर अधिसूचना की प्रति जलाने का जो ऐलान किया है, वह सरकारी उदासीनता के खिलाफ एक ज्वलंत चेतावनी है।

यदि सरकार ने अपनी हठधर्मिता नहीं छोड़ी और इस कमिटी के 'मकड़जाल' को समाप्त नहीं किया, तो यह तय है कि शिक्षकों का यह संघर्ष और उग्र रूप लेगा। बिहार की शिक्षा व्यवस्था का भविष्य दाँव पर है, और इसका दोष पूरी तरह से निर्णय टालने वाली सरकार पर होगा।






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