"करो या मरो" का संग्राम: स्वाभिमान ही सच्चा शस्त्र !-प्रो प्रसिद्ध कुमार।
जीवन एक महा-संग्राम है, और इस रणभूमि में, प्रत्येक संघर्ष - चाहे वह राजनीति की बिसात हो या जीवन का कोई अन्य मोर्चा - केवल एक ही सिद्धांत पर लड़ा जाता है: करो या मरो! यह केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि एक ध्रुव सत्य है। कोई भी लड़ाई, चाहे उसका आयाम कुछ भी हो, पूरी ताक़त, संपूर्ण ऊर्जा और अखंड संकल्प के साथ लड़ी जानी चाहिए।
युद्ध के मैदान में शत्रु की फुसफुसाहटें, उसके विचार, उसकी आलोचनाएँ - ये सब अर्थहीन हैं। उनका कोई मूल्य नहीं है। असली मूल्य है आपके अपने स्वाभिमान का। जो व्यक्ति अपने आत्म-गौरव को गिरवी रखकर जीता है, वह जीवित होते हुए भी मृत के समान है। इससे कहीं बेहतर है कि हम संघर्ष की ज्वाला में कूद पड़ें और लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हों।
यही वह अदम्य भावना थी जिसने हमारे देशभक्तों के हृदय को प्रज्वलित किया। यदि यह अग्निशिखा उनमें न होती, तो स्वतंत्रता का सूर्योदय कभी न होता। यह एक कटु सत्य है कि सत्ता अपने आप नहीं बदलती। बदलाव एक सहज प्रक्रिया नहीं है; यह महान त्याग, बलिदान और अथक संघर्ष की माँग करता है।
भय और मोह का परित्याग
एक योद्धा के मार्ग में डर और शर्म का कोई स्थान नहीं होता। जो इन मानवीय कमजोरियों के आगे झुक जाता है, वह कभी भी विजयी नहीं हो सकता। विशेष रूप से राजनीति के अखाड़े में, जहाँ धन (पैसा) और बल (पावर) का बोलबाला है, कई लोग इस दबाव से टूट जाते हैं। वे अपनी लड़ाई बीच में ही त्याग देते हैं, और ऐसे लोग न घर के रहते हैं, न घाट के।
आज की राजनीति में लक्ष्मी का वर्चस्व चरम पर है। प्रश्न उठता है: क्या केवल पैसे वाले ही देश पर राज करेंगे, या जिसकी जनसंख्या अधिक है? यदि धन बल ही सत्ता का निर्धारक बन जाए, तो यह मानसिक गुलामी का स्पष्ट संकेत है। गुलाम व्यक्ति के हाथों में अदृश्य हथकड़ियाँ और पैरों में बेड़ियाँ पड़ जाती हैं। वह अपनी इच्छा से, अपने विवेक से कुछ भी करने में असमर्थ हो जाता है।
विचारधारा ही सच्चा पथ-प्रदर्शक
यही कारण है कि राजनीति केवल धन या बाहुबल से नहीं, बल्कि विचारधारा से चलती है। विचारधारा ही वह ध्रुव तारा है जो जनता को दिशा दिखाता है। यह समझना आवश्यक है कि किसकी विचारधारा में क्या निहित है, और वह किसके लिए लाभदायक और किसके लिए हानिकारक सिद्ध होगी।
हाँ, इस युद्धभूमि में धूर्तता भी अपना रंग दिखाती है। धूर्त नेता कभी रोएगा, कभी गिड़गिड़ाएगा, और इसी नाटकीयता से वह भावनात्मक ब्लैकमेल का जाल बिछाएगा।
निर्णायक सूत्र
राजनीति में सफलता का सूत्र केवल एक ही है: क्या सामने वाला आपकी विचारधारा से मेल खाता है? यदि नहीं, तो उसके बारे में अपनी ऊर्जा व्यर्थ न करें। पूरी ताक़त के साथ उसे पराजित करने के लिए प्रहार करें।
आपके अपने विचारधारा को मानने वाले नेता में कुछ कमियाँ हो सकती हैं; आप उन्हें डाँटें, फटकारें, उनका मार्गदर्शन करें। लेकिन, एक लंबी और निर्णायक लड़ाई जीतने के लिए, उनका साथ कभी न छोड़ें। क्योंकि अंत में, यह युद्ध किसी व्यक्ति का नहीं, बल्कि आदर्शों और सिद्धांतों का है।

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