एक लोक गायक की गाथा: रामेश्वर गोप, माटी के संगीत के मर्मज्ञ !-प्रो प्रसिद्ध कुमार।

   



​बिहार की सारण जिले की माटी, जहाँ की हवा में गीतों की मिठास घुली है, वहीं से निकलकर आए हैं लोकगायक रामेश्वर गोप। उनकी कहानी केवल एक गायक की नहीं, बल्कि उस लोक संस्कृति की धड़कन है, जिसे उन्होंने अपनी आवाज़ से जीवंत कर दिया है। 4 जनवरी, 1982 को जन्में रामेश्वर गोप का जीवन संघर्ष, समर्पण और संगीत के प्रति अटूट प्रेम का एक अद्भुत संगम है।

​🛤️ कोयलरी की आंच से निकली लोकगीत की लौ

​रामेश्वर गोप के जीवन का आरंभिक अध्याय उनके पिता के परिश्रम की गाथा कहता है। उनके पिता ने पश्चिम बंगाल की कोयला खदानों (कोइलवरी) में लगभग 40 वर्षों तक कठोर श्रम किया और वहीं से सेवानिवृत्त हुए। यह वह संघर्ष है जो रामेश्वर की गायकी में एक गहरी संवेदनशीलता और यथार्थ का पुट जोड़ता है। दूर कोयलरी में बिताए पिता के वर्ष, शायद उन्हें माटी से और भी गहराई से जोड़ गए। यह अहसास कि जीवन की सच्ची धुनें और कहानियाँ गाँव, खेत और खदानों में ही बसती हैं—इसी ने उन्हें लोक संगीत का साधक बना दिया।

​🎤 भोजपुरी की सुगंध और प्रतिभा का सफर

​रामेश्वर गोप ने भोजपुरी और मगही लोकगीतों को जिया है। उनकी रग-रग में यह बोली बसती है, और यही कारण है कि उनकी आवाज़ में भोजपुरी लोकगीतों की असली 'गंध' और 'सुगंध' महसूस होती है। उन्हें केवल गायक नहीं, बल्कि लोकगीतों का पर्याय माना जाता है। वह महेंद्र मिसिर जैसे महान लोक कलाकारों की रचनाओं को पूरे सम्मान के साथ प्रस्तुत करते हैं, जैसा कि पटना दूरदर्शन (DD Bihar) पर रविवारीय लोकगीत के महफ़िल में उनका लाइव प्रदर्शन दर्शाता है। पुराने भोजपुरी झूमर गीत गाते हुए, ढोलक या अन्य वाद्य यंत्रों के साथ उनका सहज अंदाज़, उस परंपरा का वाहक है, जो आज भी गाँव की चौपालों और मन को शांति देती है।

​🧑‍🏫 कलाकार और शिक्षक का दोहरा जीवन

​रामेश्वर गोप का व्यक्तित्व बहुआयामी है। उन्होंने न सिर्फ कला के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई, बल्कि एक हाई स्कूल शिक्षक के रूप में सरकारी नौकरी भी की। यह दोहरा जीवन उनकी कला को एक नया आयाम देता है: एक तरफ कलाकार का मुक्त हृदय जो ज़ी पुरवैया और बिग मैजिक जैसे मंचों पर अपनी धुनें बिखेरता है, तो दूसरी तरफ शिक्षक का अनुशासित मस्तिष्क जो ज्ञान की रौशनी फैलाता है। बंगला, संस्कृत और अंग्रेजी जैसी भाषाओं पर उनकी पकड़, उनके व्यापक अध्ययन और संस्कृति के प्रति उनके समर्पण को दर्शाती है।

​🏆 सम्मान और माटी का गौरव

​उन्हें भोजपुरी-मगही समागम जैसे प्रतिष्ठित कार्यक्रमों में सम्मानित किया गया है, जो उनकी कला को मिली पहचान और सम्मान को दर्शाता है। सारण जिले के एकमा प्रखंड के माधोपुर गाँव के निवासी रामेश्वर गोप ने अपनी प्रतिभा से साबित किया है कि माटी से जुड़े रहकर भी आसमान को छुआ जा सकता है।

​रामेश्वर गोप आज लोक संस्कृति की एक मजबूत कड़ी हैं, जो अपनी गायकी से भोजपुरी माटी के मर्म को, उसके दुःख-सुख, प्रेम और अध्यात्म को पीढ़ियों तक पहुँचा रहे हैं।

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