जनसुराज सत्ता का साइलेंट किलर ! प्रो प्रसिद्ध कुमार।

 



दानापुर में जनसुराज को नॉमिनेशन से बलपूर्वक रोकना भाजपा का हताशा का परिचायक।

​राजनीति में 'तीसरा मोर्चा' (Third Front) अक्सर चुनावी नतीजे बदल देता है। यह खुद जीते या न जीते, लेकिन मुख्य पार्टियों के हार-जीत का फैसला जरूर करता है। बिहार विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज इसी भूमिका में है।

​जन सुराज को चुनावी पंडित भले ही 'वोट कटवा' कहें, लेकिन वह दोनों बड़े गठबंधनों के लिए बड़ा सिरदर्द बन चुका है।

​ कौन है जन सुराज का वोटर?

​जन सुराज की ताकत उन वोटरों में है जो NDA और INDIA गठबंधन, दोनों से नाराज हैं।

​असंतुष्ट वोटर: ऐसे वोटर जो मौजूदा सरकार (NDA) से और विपक्ष (INDIA गठबंधन) के पुराने राजनीतिक तरीके से खुश नहीं हैं, वे सीधे जन सुराज की ओर जा रहे हैं।

​बाग़ी नेताओं का विकल्प: दोनों मुख्य पार्टियों से टिकट न मिलने वाले बाग़ी नेता और कार्यकर्ता जन सुराज को एक मजबूत मंच मानकर चुनाव लड़ रहे हैं।

​शिक्षित वर्ग की पसंद: प्रशांत किशोर की 'सुशासन' और 'विकास' की बातें युवाओं और पढ़े-लिखे वर्ग को आकर्षित कर रही हैं।

​दानापुर का संकेत

​दानापुर में वैश्य समाज के उम्मीदवार मुटुर साव को नामांकन से रोके जाने की घटना बताती है कि जन सुराज का सीधा हमला भाजपा के पारंपरिक वैश्य वोट बैंक पर हो रहा था। यह दिखाता है कि मुख्य पार्टियाँ जन सुराज के प्रभाव से कितना डरती हैं।

​ किसे होगा ज़्यादा नुकसान? NDA या INDIA?

​जन सुराज जिस तरह के उम्मीदवारों को उतार रहा है, उससे साफ है कि NDA गठबंधन को ज्यादा नुकसान होने की संभावना है।

​NDA को नुकसान: जन सुराज की विचारधारा और कई उम्मीदवार बीजेपी के पारंपरिक उच्च जाति और वैश्य वोट बैंक में सेंध लगा रहे हैं। चूंकि जन सुराज 'सत्ता-विरोधी लहर' (Anti-Incumbency) का भी फायदा उठा रहा है, इसलिए सीधा नुकसान NDA को होगा।

​INDIA गठबंधन को खतरा: हालाँकि, अगर जन सुराज पिछड़ी या अति-पिछड़ी जातियों के मजबूत उम्मीदवारों को उतारता है, तो INDIA गठबंधन (विशेषकर RJD) के वोटों में भी बँटवारा होगा।

​PK की सीधी रणनीति

​प्रशांत किशोर की रणनीति साफ है— या तो वे 150 से ज्यादा सीटें जीतकर सरकार बनाएंगे, या फिर कम सीटें जीतकर भी त्रिशंकु विधानसभा (Hung Assembly) बनाएंगे। इसका मतलब है कि वह दोनों प्रमुख गठबंधनों को बहुमत से दूर कर देंगे और खुद 'किंग मेकर' बन जाएंगे।

​जन सुराज बिहार में केवल एक नई पार्टी नहीं है, यह बदलाव की एक चिंगारी है। यह पुराने नेताओं की बोलती बंद कर रहा है और उन्हें विकास के मुद्दों पर जवाब देने पर मजबूर कर रहा है।

​भले ही आज जन सुराज की चर्चा कम हो रही हो, लेकिन यह तय है कि यह पार्टी 20 से 40 सीटों पर हार-जीत का अंतर तय करेगी। 14 नवम्बर को जब नतीजे आएंगे, तब पता चलेगा कि इस 'साइलेंट किलर' ने बिहार की राजनीति में कितना बड़ा उलटफेर किया है।

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