युवाओं की चुनौतियाँ: रोज़गार, कौशल विकास और मानसिक स्वास्थ्य !

   


​आज की युवा पीढ़ी कई महत्वपूर्ण समस्याओं का सामना कर रही है, जिनका समाधान करना अत्यंत आवश्यक है। युवाओं के लिए स्थिर और गुणवत्तापूर्ण रोज़गार, सुरक्षित आवास, बेहतर शिक्षा और सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं को अधिक समृद्ध और किफायती बनाने की ज़रूरत है। यह न केवल उनके व्यक्तिगत विकास के लिए, बल्कि देश की आधुनिक अर्थव्यवस्था में उनके प्रभावी योगदान के लिए भी महत्वपूर्ण है।

​कौशल विकास पर ज़ोर: उद्योग की आवश्यकता

इन चुनौतियों से निपटने के लिए व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा पर ज़ोर देना चाहिए। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि युवा उद्योग और व्यवसाय की वर्तमान आवश्यकताओं के अनुरूप अपने कौशल का विकास कर सकें। जब युवा सही कौशल से लैस होंगे, तभी वे तेज़ी से बदलती वैश्विक और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में सफलतापूर्वक योगदान दे पाएंगे।

​बेरोज़गारी के आँकड़े: देश और बिहार की स्थिति

​बेरोज़गारी, विशेष रूप से युवा बेरोज़गारी, एक गंभीर राष्ट्रीय समस्या है। हाल के आँकड़ों (मई 2025 तक) के अनुसार, भारत की बेरोजगारी दर बढ़कर 5.6% हो गई, जो पिछले महीने (अप्रैल) की 5.1% दर से अधिक है। चिंता की बात यह है कि 15 से 29 वर्ष की आयु वाले युवाओं में बेरोजगारी दर सबसे अधिक देखी गई है, शहरी युवाओं के लिए यह दर लगभग 17.9% है।

​राज्य स्तर पर, बिहार में बेरोज़गारी की स्थिति गंभीर है। उपलब्ध आंकड़ों (सितंबर 2025 तक) के अनुसार, बिहार की अनुमानित बेरोज़गारी दर लगभग 11.4% है (यह आँकड़ा अलग-अलग स्रोतों पर भिन्न हो सकता है)। आर्थिक सर्वेक्षण (2024-25) के अनुसार, बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में बेरोज़गारी दर अधिक है। ग्रामीण क्षेत्रों में औसत बेरोज़गारी दर 2.6% है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह दर 6.9% तक है (पुरुषों के लिए)। उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं में यह दर और भी अधिक है, जो दर्शाता है कि शिक्षा और रोज़गार के अवसरों में तालमेल की कमी है।

​पलायन की समस्या: बिहार का दर्द

​बेरोज़गारी और अवसरों की कमी के कारण बिहार से बड़ी संख्या में युवाओं का पलायन (Migration) एक पुरानी और दुखद वास्तविकता है। रोज़गार, बेहतर शिक्षा और आजीविका की तलाश में करोड़ों लोग राज्य से बाहर जाने को मजबूर हैं।

​पलायन के मुख्य कारण:

​स्थानीय रोज़गार के अवसरों की कमी: कृषि और औद्योगिक क्षेत्र में पर्याप्त काम न होने के कारण मज़दूर और शिक्षित युवा दोनों ही बड़े शहरों (दिल्ली, मुंबई, गुजरात, पंजाब, बेंगलुरु) की ओर रुख करते हैं।

​कम आय और गरीबी: बिहार में श्रम बल भागीदारी दर राष्ट्रीय औसत से कम है, और जो लोग कार्यरत हैं उनमें से बड़ी संख्या की मासिक आय कम है।

​बुनियादी ढांचे और शिक्षा की कमी: अच्छी गुणवत्ता वाली उच्च शिक्षा और तकनीकी प्रशिक्षण संस्थानों की कमी भी पलायन को बढ़ावा देती है।

​पलायन के परिणाम:

पलायन परिवारों को धन प्रेषण (Remittances) के माध्यम से आर्थिक सहायता देता है, लेकिन यह कई सामाजिक चुनौतियाँ भी खड़ी करता है। गांवों में श्रमिकों की कमी, परिवार का अलगाव, और पलायन करने वाले श्रमिकों का बाहरी राज्यों में असुरक्षित और खराब वातावरण में जीवन बिताना इसके कुछ गंभीर परिणाम हैं।

​मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक सहायता

​आलेख में एक और महत्वपूर्ण बिंदु पर ज़ोर दिया गया है: युवाओं को अवसाद और अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने के लिए सहायता और परामर्श सेवाएँ उपलब्ध कराई जानी चाहिए। रोज़गार की अनिश्चितता, सामाजिक दबाव और जीवन की चुनौतियों के कारण युवा अक्सर मानसिक तनाव का सामना करते हैं। इन सेवाओं की उपलब्धता से उन्हें एक स्वस्थ और उत्पादक जीवन जीने में मदद मिल सकती है।

​भारत और विशेष रूप से बिहार के युवाओं के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए एक समग्र रणनीति की आवश्यकता है। व्यावसायिक कौशल विकास, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, पर्याप्त रोज़गार सृजन और मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान करके ही हम युवाओं की क्षमता का पूरा उपयोग कर सकते हैं और उन्हें राष्ट्र निर्माण में सक्रिय भागीदार बना सकते हैं।

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