निजी निवेश पर ग्रहण: विश्वास की कमी और अनिश्चितता का साया !-प्रो प्रसिद्ध कुमार।
उद्योग-सरकार के बीच 'भरोसे की खाई', निवेशकों का निराशाजनक व्यवहार: संकट में भारत की विकास गाथा !
निजी पूँजी के भारत में निवेश करने से कतराने का सबसे बड़ा कारण सरकार और उद्योग जगत के बीच विश्वास की कमी है। नीतिगत अस्थिरता, अप्रत्याशित नियामक बदलाव, या उद्योग-अनुकूल माहौल की कमी के कारण निवेशक हिचकिचा रहे हैं।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए अपने "तरकश के हर तीर का इस्तेमाल" किया है। सरकार ने कर कटौती, प्रोत्साहन पैकेज या अन्य नीतिगत उपायों के माध्यम से प्रयास किए हैं। वित्त मंत्री की "मिन्नतों और चेतावनियों" का कोई असर नहीं हुआ है, जिसका अर्थ है कि सरकारी प्रयास बाजार की वास्तविक आशंकाओं और संरचनात्मक कमियों को दूर करने में विफल रहे हैं।
भारतीय निवेशकों का वर्तमान व्यवहार बाजार में मौजूदा जोखिम और अनिश्चितता को उजागर करता है। निवेशक अब निवेश के बजाय निम्न गतिविधियों को प्राथमिकता दे रहे हैं:
नकदी जमा अनिश्चितता के कारण पूँजी को तरल रूप में रखना पसंद करना। बाजार में अनुकूलता आने तक सक्रिय निवेश को टालना।
दिवालिया कंपनियों का अधिग्रहण केवल भारी छूट या संकट में पड़ी संपत्ति को खरीदना, जो कि अवसरवादी निवेश है, न कि नए विस्तार या ग्रीनफील्ड निवेश।
घरेलू बाजार की तुलना में विदेशी बाजारों में बेहतर रिटर्न और कम जोखिम की तलाश करना।
यह व्यवहार स्पष्ट करता है कि घरेलू निवेशक स्वयं भी भारत के दीर्घकालिक विकास की संभावनाओं के प्रति संशय में हैं, जो अर्थव्यवस्था के लिए एक गहन चिंता का विषय है।

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