माटी का पुत्र: एक विधायक की सादगी और संघर्ष की गाथा ​फुलवारीशरीफ: जहाँ सपनों ने उड़ान भरी !- प्रो प्रसिद्ध कुमार ।


   

​माले (भाकपा-माले) के गलियारों से उठकर, फुलवारीशरीफ विधानसभा क्षेत्र की माटी से जुड़े एक ऐसे व्यक्तित्व की कहानी, जो सत्ता के चमक-दमक से परे, साधारण जीवन की एक नई परिभाषा गढ़ता है—नाम है गोपाल रविदास।

ये औरों की तरह सत्ता व कुर्सी के लिए नीतियों व सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया, दल बदल तो दूर की बात है और यही चरित्र की चर्चा पूरे क्षेत्र में है जो विश्वसनीयता को बरकरार रखा है।

​ संघर्ष की नींव पर खड़ा जीवन

​वर्ष 1987 में पटना विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त करने वाले गोपाल रविदास जी ने केवल किताबी ज्ञान अर्जित नहीं किया, बल्कि जीवन के कठोर अनुभवों से भी बहुत कुछ सीखा। वह आज भी उसी गैंरमजरुआ (सरकारी गैर-खेतिहर) जमीन पर बने मकान में निवास करते हैं, जो उनके सादे जीवन और जन-जुड़ाव का प्रतीक है। यह कोई साधारण निवास नहीं, बल्कि उस जन-प्रतिनिधि का विनम्र आश्रम है, जिसने सत्ता के वैभव को ठुकराकर सादगी को अपनाया है।

​"सच्चे नेता का घर ईंट-सीमेंट का नहीं, बल्कि जनता के दिलों में बना होता है।"

​उनकी संपत्ति का विवरण भी उनके नैतिक बल का प्रमाण है। उनकी धर्मपत्नी ममता जी, जो मसौढ़ी अस्पताल में कार्यरत हैं, की कुल जमा पूंजी मात्र ₹57 हज़ार है, और स्वयं गोपाल रविदास जी के पास कुल ₹1.50 हज़ार की पूंजी है। यह आंकड़ा आज के युग में, जहाँ राजनीति धन-बल का पर्याय बन चुकी है, किसी क्रांतिकारी उद्घोष से कम नहीं है। वह विधायक बनने के बाद भी लोन पर खरीदी गई एक स्कॉर्पियो कार का मासिक किश्त चुका रहे हैं। यह दर्शाता है कि उनकी प्राथमिकताएँ भौतिक सुख-सुविधाएँ नहीं, बल्कि जनसेवा और संघर्ष हैं।

​ चुनावी रण में आस्था का सैलाब

​कल बुधवार को, जब वह 188-अ.जा. विधानसभा क्षेत्र से अपना नामांकन पत्र दाखिल करने निकले, तो उनके चेहरे पर कोई अहंकार नहीं, बल्कि दृढ़ संकल्प की आभा थी। उन्हें समर्थन देने वालों में विजय केवट और गुरुदेव दास जैसे लोग थे, जो दलित-पिछड़े समाज से उनके अटूट रिश्ते को दर्शाते हैं। उनके गले में पड़ी पुष्प मालाएं केवल फूलों की नहीं थीं, बल्कि उन सैकड़ों आँखों के विश्वास और आकांक्षाओं का भार थीं, जो उन्हें अपने उद्धारकर्ता के रूप में देखती हैं।

​यह नामांकन केवल एक औपचारिक प्रक्रिया नहीं थी; यह महागठबंधन समर्थित उस विचारधारा की पुनःस्थापना थी, जो मानती है कि जनता का सच्चा सेवक वही है, जो उनके बीच का हो, उनके जैसा जीता हो, और उनके दर्द को समझता हो।

​गोपाल रविदास जी केवल एक विधायक नहीं, बल्कि उस माटी के पुत्र हैं, जिसने अभाव में भी शिक्षा और स्वाभिमान का दीपक जलाए रखा है। उनका जीवन एक प्रेरणा है—यह संदेश कि सच्ची शक्ति पैसे में नहीं, बल्कि सिद्धांतों और जन-विश्वास में निहित होती है।

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