RJD के चुनावी गीतों के कुछ दमदार मुखड़े बजते सुना पूजा पंडालों में।
"लालू बिना चालू ई बिहार न होई..."
आज कई गांवों में दीपावली के अवसर पर घूमते हुए गया जहां लोग स्वेच्छा से लालू तेजस्वी के गीत पूजा पंडालों में सुनने को मिला। इसी से अंदाजा लगा कि लालू जी को प्रचार प्रसार करने की ज्यादा जरूरत नहीं है, इनके वोटरों में खुद उत्साह है।
RJD के गीत अक्सर भोजपुरी और ठेठ बिहारी अंदाज़ में होते हैं, जो सीधे जनता से जुड़ते हैं। यहां कुछ प्रमुख गीतों के मुखड़े दिए गए हैं:
" मूंछ ऐंठी करेला फुटनिया ,ये बबुआ लालू जी के देनिया .."
"लालू बिना चालू ई बिहार न होई..."
संदेश: यह गीत स्पष्ट रूप से लालू यादव को बिहार की राजनीति का अपरिहार्य हिस्सा बताता है और संदेश देता है कि उनके बिना बिहार की राजनीतिक गाड़ी आगे नहीं बढ़ सकती।
"तेजस्वी के बिना सुधार न होई..."
संदेश: यह लाइन तेजस्वी यादव को युवा नेता और बदलाव का चेहरा बताते हुए, उनके नेतृत्व में ही राज्य में विकास और सुधार संभव होने का दावा करती है।
"तेजस्वी ही आएंगे, तेजस्वी अबकी रोशन सवेरा..."
संदेश: यह RJD का एक प्रमुख थीम सॉन्ग है, जो तेजस्वी को केंद्र में रखकर उन्हें उम्मीद की नई किरण और आने वाला रोशन भविष्य बताता है।
"तुम तो धोखेबाज, वादा करके क्या भूल जाते हो..."
संदेश: यह मुखड़ा सीधे तौर पर सत्ताधारी पार्टी पर निशाना साधता है, उन पर वादाखिलाफी और झूठे आश्वासन देने का आरोप लगाता है।
"लालू जी फिर से न देंगे गद्दी, तेजस्वी कर देंगे तोहरी छुट्टी।"
संदेश: यह लाइन RJD की राजनीतिक शक्ति और तेजस्वी के बढ़ते कद को दर्शाती है, भले ही यह विपक्षी खेमे की ओर से RJD पर कटाक्ष के रूप में भी प्रयोग होती हो।
🔥 चुनावी माहौल में गीतों का महत्व
RJD के लिए ये गीत केवल प्रचार का माध्यम नहीं, बल्कि जनता की नब्ज को छूने का तरीका हैं:
देसीपन और जुड़ाव: गीतों में प्रयोग की गई स्थानीय भाषा और ग्रामीण धुनें सीधे आम जनता से भावनात्मक जुड़ाव स्थापित करती हैं।
सीधा वार: ये गीत कुशलता से बेरोजगारी, गरीबी और सरकारी वादों की विफलता जैसे ज्वलंत मुद्दों को उठाते हैं।
विरासत और ऊर्जा का मेल: इन गीतों में एक ओर लालू यादव का पुराना जादू और सामाजिक न्याय का संदेश होता है, वहीं दूसरी ओर तेजस्वी यादव की युवा ऊर्जा और विकास की नई सोच का मिश्रण होता है।
दीपावली के दौरान जब लोग अपने घरों को लौटते हैं और उत्सव का माहौल होता है, तब ये चुनावी गीत रैलियों से लेकर चौपालों तक गूंजकर सियासी चर्चाओं को और भी तेज कर देते हैं। ये गीत इस बात का प्रतीक हैं कि बिहार की राजनीति में संगीत और सत्ता का मेल सदियों पुराना है।

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