बिहार की '10 हजारी' योजना: चुनावी दान या वित्तीय बोझ?
भारत के
इतिहास में पहली बार सरकार द्वारा 10-10 हजार रुपये में वोट खरीदी गई है-पी के।
वर्तमान में भी बिहार सरकार प्रतिदिन ₹63 करोड़ से अधिक का ब्याज चुका रही है।
जन सुराज पार्टी के नेता प्रशांत किशोर ने बिहार के हालिया विधानसभा चुनाव परिणामों के संदर्भ में एक तीखा बयान दिया है, जिसमें उन्होंने सीधे तौर पर सत्ताधारी दल पर '10-10 हजार रुपये में वोट खरीदने' का आरोप लगाया है। उनका इशारा स्पष्ट रूप से मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना की ओर है, जिसके तहत पात्र महिलाओं के खाते में ₹10,000 की पहली किस्त भेजी गई है और बाद में ₹2 लाख तक की अतिरिक्त सहायता का वादा किया गया है।
प्रशांत किशोर ने अगले 18-20 महीनों का प्लान बनाते हुए घोषणा की है कि उनकी पार्टी उन महिलाओं को ₹2 लाख की शेष राशि दिलाने के लिए अभियान चलाएगी, जिन्हें पहली किस्त मिल चुकी है। यह कदम एक राजनीतिक दबाव बनाने की रणनीति है, लेकिन इसका सीधा असर बिहार की नाजुक वित्तीय स्थिति पर पड़ सकता है।
योजना का वित्तीय बोझ: 10,000 रुपये और 2 लाख रुपये का समीकरण
मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत, लगभग 1 करोड़ महिलाओं को ₹10,000 की पहली किस्त देने की बात कही गई है।
1. प्रारंभिक व्यय (₹10,000 की किस्त)
कुल लाभार्थी (अनुमानित): 1 करोड़ महिलाएँ।
प्रति लाभार्थी राशि: ₹10,000
कुल वित्तीय बोझ: 1,00,00,000 \times ₹10,000 = ₹10,000 करोड़
सरकारी सूत्रों के अनुसार, ₹10,000 की राशि सीधे अनुदान (Grant) है, जिसे लौटाना नहीं है। यह भारी-भरकम राशि, भले ही चुनाव से पहले दी गई हो, राज्य के खजाने पर तत्काल ₹10,000 करोड़ का बोझ डालती है।
2. संभावित भविष्य का व्यय (₹2 लाख का वादा)
यह योजना ₹10,000 के बाद, 6 महीने के सफल व्यवसाय संचालन के आकलन पर ₹2 लाख तक की अतिरिक्त सहायता का वादा करती है। प्रशांत किशोर इसी वादे को पूरा कराने का बीड़ा उठा रहे हैं।
यदि ₹1 करोड़ महिलाओं में से 10% भी ₹2 लाख की राशि के लिए पात्र होती हैं:
पात्र लाभार्थी: 1,00,00,000 \times 10\% = 10 लाख महिलाएँ
प्रति लाभार्थी राशि (अधिकतम): ₹2,00,000
अतिरिक्त अनुमानित बोझ: 10,00,000 \times ₹2,00,000 = ₹20,000 करोड़
यदि ₹1 करोड़ महिलाओं में से 50% भी यह राशि प्राप्त करती हैं (जैसा कि प्रशांत किशोर की मांग का निहितार्थ है):
पात्र लाभार्थी: 50 लाख महिलाएँ
अतिरिक्त संभावित बोझ: 50,00,000 \times ₹2,00,000 = ₹1,00,000 करोड़ (यानी एक लाख करोड़ रुपये)।
यह ₹2 लाख का वादा, यदि बड़े पैमाने पर लागू किया जाता है, तो बिहार के वार्षिक बजट पर एक भयानक वित्तीय दबाव डालेगा और राज्य को एक गहरे कर्ज के जाल में धकेल सकता है।
प्रति व्यक्ति कर्ज पर संभावित हश्र
बिहार पहले से ही देश के सबसे अधिक कर्जदार राज्यों में से एक है। नवीनतम अनुमानों के अनुसार:
बिहार सरकार पर कुल कर्ज: लगभग ₹4 लाख करोड़।
प्रति व्यक्ति कर्ज (मौजूदा अनुमान): लगभग ₹35,000 से ₹40,000 (2025 के आँकड़ों के आधार पर)।
बिहार का कर्ज उसके राज्य सकल घरेलू उत्पाद (GSDP) के लगभग 37% तक पहुँच चुका है, जो केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित सीमा के करीब है।
यदि सरकार को ₹1 लाख करोड़ (50% लाभार्थियों को ₹2 लाख देने का संभावित अधिकतम बोझ) का अतिरिक्त फंड जुटाना पड़ता है, तो इसका एक बड़ा हिस्सा कर्ज के रूप में ही लिया जाएगा।
अतिरिक्त ₹1,00,000 करोड़ का कर्ज लेने पर:
राज्य का कुल कर्ज ₹5 लाख करोड़ को पार कर जाएगा।
प्रति व्यक्ति कर्ज में भारी वृद्धि होगी, जो लगभग ₹5,000 से ₹10,000 तक बढ़ सकता है (जनसंख्या वृद्धि को ध्यान में रखते हुए)।
यह बढ़ी हुई उधारी राज्य के विकासात्मक कार्यों के लिए उपलब्ध पूंजी को कम कर देगी और ब्याज भुगतान के बोझ को असहनीय बना देगी। वर्तमान में भी बिहार सरकार प्रतिदिन ₹63 करोड़ से अधिक का ब्याज चुका रही है।
एक आलोचनात्मक परिप्रेक्ष्य (A Critical Analysis)
प्रशांत किशोर का आरोप कि यह 'वोट खरीदने' की कोशिश है, यह दर्शाता है कि लोक-लुभावन (Populist) योजनाओं को राजनीतिक लाभ से अलग करना कठिन है।
वित्तीय गैर-जिम्मेदारी: इतनी बड़ी रकम को बिना किसी ठोस दीर्घकालिक वित्तीय योजना के सीधे अनुदान के रूप में देना वित्तीय गैर-जिम्मेदारी का संकेत है। ₹10,000 की राशि, भले ही महिलाओं को सशक्त करने के लिए दी गई हो, चुनावी लाभ के रूप में अधिक दिखाई देती है।
दबाव की राजनीति: प्रशांत किशोर की 'फॉर्म भरवाने' की रणनीति, सरकार पर ₹2 लाख का वादा तुरंत पूरा करने का दबाव बनाएगी। यदि सरकार यह बोझ उठाती है, तो राज्य की वित्तीय स्थिरता खतरे में पड़ जाएगी। यदि सरकार पीछे हटती है, तो 'जन सुराज' को राजनीतिक लाभ मिलेगा।
योजना की दक्षता: ₹2 लाख की राशि केवल सफल व्यवसाय के आकलन पर मिलनी है। यह एक शर्त है। यदि जन सुराज बिना किसी शर्त के यह राशि दिलवाने की बात करता है, तो इसका मतलब है कि ₹2 लाख भी चुनावी दान बन जाएगा, जिससे पैसे का दुरुपयोग होने और व्यवसाय सफल होने की संभावना कम हो जाएगी। यह योजना के मूल उद्देश्य (आत्मनिर्भरता) को ही विफल कर देगा।

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