बिहार चुनाव में एग्जिट पोल की विफलता और विश्वसनीयता पर सवाल ! प्रो प्रसिद्ध कुमार।
2020 बिहार विधानसभा चुनाव: एग्जिट पोल ऑफ पोल्स और ऐतिहासिक विफलता!
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में, विभिन्न एजेंसियों द्वारा जारी एग्जिट पोल ऑफ पोल्स (Exit Poll of Polls) ने महागठबंधन (MGB) को स्पष्ट बहुमत का अनुमान लगाया था। औसतन, महागठबंधन को लगभग 133 सीटें मिलने की भविष्यवाणी की गई थी, जबकि एनडीए (NDA) को लगभग 100 सीटें मिल रही थीं।
वास्तविक परिणाम (2020): एग्जिट पोल पूरी तरह से असत्य साबित हुए। एनडीए ने 125 सीटें जीतकर सरकार बनाई, जबकि MGB 110 सीटों पर रुक गया। यह एग्जिट पोल की सटीकता के लिए एक गंभीर झटका था, क्योंकि अधिकांश प्रमुख एजेंसियों (जैसे इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया) ने भारी अंतर से MGB की जीत का अनुमान लगाया था।
2020 का परिणाम एग्जिट पोल की सटीकता पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगाता है, यह दर्शाता है कि अनुमान और वास्तविक चुनावी गणित में जमीन-आसमान का अंतर हो सकता है।
2025 बिहार विधानसभा चुनाव: एग्जिट पोल ऑफ पोल्स और विश्वसनीयता का दांव
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के मतदान के बाद, एग्जिट पोल ऑफ पोल्स एनडीए (NDA) के पक्ष में झुका हुआ है।
एग्जिट पोल ऑफ पोल्स (2025): औसतन, NDA को लगभग 140-155 सीटें मिलने का अनुमान है, जिससे उन्हें स्पष्ट बहुमत मिलता दिख रहा है। MGB को 80-100 सीटों के आसपास सीमित किया गया है।
सत्य होने का अनुमान: 2020 की भारी विफलता के बावजूद, एग्जिट पोल के सत्य होने का अनुमान एक बार फिर लगाया जा रहा है, लेकिन इसकी सटीकता 100% नहीं हो सकती। अनुमान है कि यह रुझान 50-70% तक सही हो सकता है, लेकिन अंतिम परिणाम आने तक विश्वसनीयता सवालों के घेरे में रहेगी।
एग्जिट पोल की आलोचना: संभावनाओं का गणित या मीडिया का मनोविज्ञान?
एग्जिट पोल एक सांख्यिकीय उपकरण है, जो सीमित सैंपल (नमूने) पर निर्भर करता है, न कि सभी मतदाताओं पर। 2020 की विफलता इस बात का प्रमाण है कि एग्जिट पोल में निहित त्रुटियाँ गंभीर परिणाम दे सकती हैं।
सैंपल त्रुटि: यदि सैंपल आबादी के अनुपात का सही प्रतिनिधित्व नहीं करता है (जैसे कि 'साइलेंट वोटर' या महिला मतदाताओं के रुख को नहीं पकड़ पाता), तो भविष्यवाणी गलत हो जाती है। 2020 में, माना जाता है कि नीतीश कुमार के लिए महिला मतदाताओं का मूक समर्थन एग्जिट पोल की पहुंच से बाहर था।
मतदाता की गोपनीयता: कई मतदाता मतदान के बाद अपनी वास्तविक पसंद बताने में झिझकते हैं या जानबूझकर गलत जानकारी देते हैं, जिससे डेटा की विश्वसनीयता प्रभावित होती है।
मनोवैज्ञानिक दबाव: एग्जिट पोल के नतीजों से बाजार और मीडिया में एक खास "बैंडवैगन इफ़ेक्ट" (जीतने वाले घोड़े पर दांव लगाने की प्रवृत्ति) पैदा होता है, जो चुनाव के अंतिम चरण या राजनीतिक माहौल को प्रभावित कर सकता है।
2020 के बिहार चुनाव ने एग्जिट पोल की भविष्यवाणियों को एक अनुमान मात्र सिद्ध किया, जिसे अंतिम सत्य नहीं माना जा सकता। 2025 के एग्जिट पोल ऑफ पोल्स में NDA को स्पष्ट बढ़त मिली है, लेकिन 2020 के उलटफेर का इतिहास यह मांग करता है कि इन आंकड़ों को सावधानी और संदेह की नजर से देखा जाए। एग्जिट पोल चुनावी उत्साह को बढ़ाते हैं, लेकिन लोकतंत्र की वास्तविक आवाज तो मतगणना के बाद ही स्पष्ट होती है।

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