चुनाव परिणाम: संयम की कसौटी और लोकतांत्रिक मर्यादा!प्रो प्रसिद्ध कुमार।

   


​चुनाव—यह केवल अंकों का खेल या सत्ता का हस्तांतरण मात्र नहीं है। यह एक महापर्व है, लोकतंत्र के प्राणों का स्पंदन, जहाँ करोड़ों आशाएँ, विचार और संकल्प मतदान पेटिकाओं में सिमट कर एक नए भविष्य की नींव रखते हैं। जब परिणाम सामने आते हैं, तो यह वह क्षण होता है जब हमारे संयम और लोकतांत्रिक भावना की वास्तविक परीक्षा होती है।

​ जय और पराजय के क्षण

​जीवन की भांति, राजनीति भी एक अविरल नदी के समान है जिसमें ज्वार-भाटा आना निश्चित है।

​जीत का उल्लास: विजय का क्षण निःसंदेह मन को पुलकित करता है। परंतु, इस उल्लास की सीमाएँ संयम के धागे से बंधी होनी चाहिए। यह स्मरण रहे कि मिली हुई सफलता जनता के विश्वास का प्रतिफल है, न कि व्यक्तिगत superiority का प्रमाण। अति-उत्साह अक्सर अहंकार का रूप ले लेता है, और राजनीति के मैदान में अहंकार पतन की पहली सीढ़ी है। इस समय, विनम्रता ही सबसे बड़ा आभूषण है।

​पराजय का संताप: पराजय हृदय को विचलित कर सकती है, परंतु इसे अंतिम विराम नहीं समझना चाहिए। यह केवल एक अध्याय का अंत है, सम्पूर्ण गाथा का नहीं। खेल में हार-जीत निश्चित है। हार हमें अपनी नीतियों, रणनीति और संवाद शैली का आत्मनिरीक्षण करने का अवसर देती है। निराशा में डूबने के बजाय, इसे अगले चरण के लिए प्रेरणास्रोत बनाना चाहिए। महानता अक्सर पराजय के बाद और भी दृढ़ संकल्प के साथ उठ खड़े होने में निहित होती है।

​राजनीति: विचारधारा की लड़ाई, शत्रुता नहीं

​राजनीति विचारधाराओं का युद्धक्षेत्र है, जहाँ एक पक्ष किसी विशेष दर्शन को लेकर आता है, तो दूसरा पक्ष एक वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। यह लड़ाई नीतियों और सिद्धांतों को लेकर होती है, यह कभी भी व्यक्तिगत द्वेष या शत्रुता का रूप नहीं लेनी चाहिए।

​वोटर चाहे जिस भी उम्मीदवार को चुनें, उनका ध्येय राष्ट्र और समाज का कल्याण ही होता है। विपक्ष में दिया गया हर वोट असहमति की अभिव्यक्ति है, शत्रुता की घोषणा नहीं। लोकतंत्र की परिभाषा ही यह है कि यहाँ अलग-अलग आवाजें एक साथ गूंजती हैं।

​याद रखें: पक्ष और विपक्ष दोनों ही लोकतंत्र के दो आवश्यक पंख हैं। यदि एक पक्ष शासन का रथ हाँकता है, तो दूसरा पक्ष उसे सही दिशा में रखने के लिए आलोचना और निगरानी की लगाम थामता है। विपक्ष लोकतंत्र की वह सौंदर्य है जो उसे एकाधिकारवाद के दलदल में गिरने से बचाती है।

​ मर्यादा का पालन: सभ्य समाज का आधार

​चुनाव परिणाम के बाद का व्यवहार ही सभ्य समाज की पहचान कराता है। विजयी पक्ष को पराजितों के प्रति सौहार्द और सम्मान दिखाना चाहिए, और पराजित पक्ष को विजेता को शुभकामनाएँ देकर जनादेश का सम्मान करना चाहिए।

​हम सब एक ही राष्ट्र रूपी वृक्ष की शाखाएँ हैं। चुनाव का परिणाम किसी को शत्रु घोषित करने का अधिकार नहीं देता। एक मतदाता जिसने विपरीत पार्टी को वोट दिया है, वह आपका नागरिक, पड़ोसी और हितैषी है—मात्र एक राजनीतिक विरोधी नहीं। कटुता और वैमनस्य राष्ट्र की प्रगति को धीमा कर देते हैं।

​आइये, संकल्प लें:

​कि हम चुनाव परिणामों को केवल एक राजनीतिक घटना के रूप में देखेंगे, व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का विषय नहीं। हम जीत का स्वागत विनम्रता से करेंगे, और हार को सकारात्मक ऊर्जा से स्वीकार करेंगे। हम लोकतंत्र के इस खेल में हार-जीत से ऊपर उठकर, राष्ट्र निर्माण के साझा लक्ष्य को सर्वोपरि रखेंगे। संयम, सौहार्द और मर्यादा ही वह त्रिवेणी है जो लोकतंत्र को पवित्र और अविनाशी बनाए रखती है।

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