वर्तमान पत्रकारिता और निष्पक्षता की आवश्यकता !-प्रो प्रसिद्ध कुमार।
आज, राष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर पर, भारतीय पत्रकारिता के वर्तमान परिदृश्य का आकलन करना आवश्यक है। यह एक ऐसा समय है जब लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की भूमिका और उसकी स्वतंत्रता पर गहन चिंतन की आवश्यकता है। हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय की यह टिप्पणी कि "सरकार की आलोचना करना पत्रकारों का अधिकार है" पत्रकारिता जगत के लिए एक महत्वपूर्ण संबल है। यह टिप्पणी अभिव्यक्ति की आजादी के संवैधानिक मूल्यों को रेखांकित करती है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है।
जनसरोकार और मुद्दे वाली पत्रकारिता का विलोपन
पत्रकारिता का मूल उद्देश्य लोकहित में कार्य करना और जनसरोकार से जुड़े मुद्दों को सामने लाना है। एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह जरूरी है कि प्रेस सत्ता को आईना दिखाए। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में, पत्रकारिता का यह मौलिक चरित्र कमजोर होता दिख रहा है:
सत्ता का दबाव: सरकारों द्वारा आलोचना को स्वीकार न करना और पत्रकारों को प्रताड़ित करने की घटनाएँ बढ़ी हैं। गैरकानूनी गतिविधि निवारण अधिनियम जैसे कठोर कानूनों का उपयोग आलोचनात्मक आवाजों को दबाने के लिए किया जा रहा है, जो पत्रकारों को सलाखों के पीछे धकेल रहा है। यह प्रवृत्ति सच्चाई को सामने आने से रोकती है।
प्रचारतंत्र में बदलाव: जब पत्रकारिता सरकार की आलोचना करने या तार्किक विश्लेषण करने के बजाय, उसकी प्रचारतंत्र में तब्दील होने लगती है, तो उसकी विश्वसनीयता पर प्रहार होता है। आज कई मीडिया संस्थान तार्किक विश्लेषण और पक्ष-विपक्ष की संतुलित प्रस्तुति के बजाय, एकतरफा निंदा या प्रशंसा में उलझे हुए हैं।
गुम होते जनहित के मुद्दे: ज्वलंत सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं (जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, किसानों के मुद्दे) पर गहराई से रिपोर्टिंग करने वाली मुद्दे वाली पत्रकारिता हाशिए पर चली गई है। इसके स्थान पर, सनसनीखेज, व्यक्तिगत, और विवादास्पद विषयों को प्राथमिकता दी जा रही है, जो अक्सर टीआरपी केंद्रित होते हैं।
स्वस्थ लोकतंत्र के लिए निष्पक्ष पत्रकारिता की अनिवार्यता
स्वस्थ लोकतंत्र की मांग है कि पत्रकारीय आलोचना को प्रोत्साहित किया जाए। आलोचना का अर्थ केवल निंदा करना नहीं, बल्कि तार्किक विश्लेषण प्रस्तुत करना होता है। यह सरकारों को अपनी नीतियों के निर्धारण और योजनाओं के संचालन में सुधार का अवसर देता है। आलोचना को दबाना या रोकना, जैसा कि लेख में कहा गया है, लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बाधित करने के समान है।
निष्पक्ष पत्रकारिता की आवश्यकता इसलिए भी है क्योंकि वह:
सत्य की प्रहरी: यह सुनिश्चित करती है कि नागरिक तथ्य-आधारित जानकारी के आधार पर निर्णय लें, न कि प्रोपेगेंडा या फेक न्यूज के आधार पर।
सत्ता का संतुलन: यह सरकार की निरंकुशता को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और जवाबदेही तय करती है।
जनता की आवाज: यह वंचितों और शोषितों की आवाज़ बनकर लोकहित को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है।
पत्रकारिता को अपनी मूल पहचान, जो कि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ होना है, को बनाए रखने के लिए:
साहस और सत्यनिष्ठा: पत्रकारों को सत्ता के दबाव के सामने झुकने के बजाय, सत्यनिष्ठा और संवैधानिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध रहना होगा।
तार्किक और संतुलित रिपोर्टिंग: रिपोर्टिंग में पक्ष और विपक्ष का तार्किक विश्लेषण होना चाहिए, ताकि जनता किसी भी मुद्दे के सभी पहलुओं को समझ सके।
वित्तीय स्वतंत्रता: मीडिया संस्थानों को सरकारी विज्ञापनों पर अत्यधिक निर्भरता कम करनी होगी, ताकि उनकी वित्तीय स्वतंत्रता उनकी संपादकीय स्वतंत्रता को प्रभावित न करे।
पत्रकारिता दिवस हमें याद दिलाता है कि एक निष्पक्ष, निडर, और जनसरोकार वाली पत्रकारिता ही लोकतंत्र की असली शक्ति है। मीडिया को केवल प्रचारतंत्र बनने के खतरे से बचना होगा और सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी के पीछे निहित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को पूरी शक्ति से उपयोग करना होगा।

Comments
Post a Comment