सच्ची उपलब्धि और सत्पात्रता !

   


​हम अपने जीवन में कितना श्रम करते हैं और कितना अर्जन (कमाई) करते हैं, यह चीज़ कोई ख़ास मायने नहीं रखती।

​दरअसल, हमारी सच्ची उपलब्धि यह कहलाती है कि हमने समाज को क्या दिया, परिवार के लिए क्या किया, या फिर देश, संस्कृति, और मानवता के नाम पर कितना योगदान दिया।

​सच्चा व्यक्ति वह है जो केवल अपने लिए नहीं जीता। उसकी सफलता का आकलन इस बात से होता है कि उसने अपने संसाधनों का उपयोग दूसरों के उत्थान और व्यापक भलाई के लिए कैसे किया।

​"हमने समाज को क्या दिया, परिवार के लिए क्या किया या देश, संस्कृति, मानवता के नाम कितना किया, यही उपलब्धि कहलाती है।"

​हम धन, ज्ञान और चरित्र से अच्छे व्यक्ति तब कहे जाएँगे, जब हम इन अमूल्य संसाधनों को पात्र देखकर खर्च करेंगे।

​धन - इसका सही उपयोग स्वयं की ज़रूरतों के बाद, समाज के ज़रूरतमंदों और अच्छे कार्यों में दान करने में है।

​ज्ञान : इसे केवल अपने तक सीमित न रखकर, दूसरों को शिक्षित और सशक्त बनाने में लगाना ही ज्ञान की सार्थकता है।

​चरित्र -अपने उच्च नैतिक मूल्यों को बनाए रखना और दूसरों के लिए एक प्रेरणा स्रोत बनना ही चरित्र की सबसे बड़ी पूंजी है।

जीवन की दौड़ में केवल कमाना नहीं, बल्कि बाँटना और योगदान देना ही हमारे अस्तित्व को अर्थपूर्ण बनाता है।

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