भारतीय समाजवाद के भीष्म पितामह: डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा का निधन !

   


​एक युग का अंत!

​भारतीय राजनीतिक और वैचारिक जगत के एक देदीप्यमान सितारे, डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा का 97 वर्ष की आयु में 19 नवंबर 2025 को निधन हो गया। बिहार के मुजफ्फरपुर स्थित उनके पैतृक आवास पर ली गई यह अंतिम सांस, भारतीय समाजवाद के एक महत्वपूर्ण अध्याय के समापन का प्रतीक है। उनके जाने से देश के वैचारिक परिदृश्य में एक ऐसा शून्य उत्पन्न हो गया है, जिसे भर पाना असंभव है।

​ समाजवाद का सबसे पुराना और प्रमुख स्तंभ

​डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा सिर्फ एक चिंतक नहीं थे; वह भारतीय समाजवाद के जीवित इतिहास थे। उन्हें इस विचारधारा के सबसे पुराने और प्रमुख स्तंभों में से एक माना जाता था। उनका लेखन, उनके विचार और उनका सादा जीवन – ये सब भारतीय समाजवाद की मूल आत्मा को दर्शाते थे।

​विरासत और योगदान: उन्होंने अपने दशकों के वैचारिक सफर में समाजवाद के सिद्धांतों को न केवल मजबूती दी, बल्कि उन्हें भारतीय संदर्भ में प्रासंगिक बनाए रखने के लिए लगातार काम किया।

​अंतिम यात्रा: यह एक विडंबना ही है कि जिस मुजफ्फरपुर (मुसहरी) को उन्होंने अपनी कर्मभूमि और चिंतन का केंद्र बनाया, उसी पैतृक घर में उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा। उनका अधिकांश समय यहीं, गाँव की मिट्टी और ग्रामीण जीवन के बीच बीता, जो उनके जमीनी विचारों का स्रोत भी था।

​ज्ञान का विशाल भंडार: अंतर्राष्ट्रीय पहचान

​डॉ. सिन्हा का साहित्यिक और अकादमिक योगदान अत्यंत विशाल है। उनकी लेखनी ने देश की सीमाओं को लांघकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई:

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