नीतीश कुमार: दसवी बार बिहार के मुख्यमंत्री - एक समीक्षा !
बिहार की राजनीति के 'चाणक्य' कहे जाने वाले नीतीश कुमार ने एक बार फिर दसवीं बार राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली है। यह शपथ ग्रहण समारोह उन्हें भारतीय राजनीतिक इतिहास के उन चुनिंदा नेताओं की श्रेणी में खड़ा करता है, जिन्होंने लगातार इतने लंबे समय तक और इतनी बार शीर्ष पद संभाला है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के बैनर तले उनकी सत्ता में वापसी, उनकी राजनीतिक कुशलता और गठबंधन की राजनीति में उनकी अपरिहार्यता को दर्शाती है। हालांकि, 20 वर्षों के शासन के बावजूद, उनके सामने चुनौतियों का एक अंबार है, जिसका निदान करना उनकी अगली पारी की दिशा तय करेगा।
प्रशंसनीय पहलें और उपलब्धियां
नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार ने कई मोर्चों पर सराहनीय प्रगति की है, जिसने उन्हें 'सुशासन बाबू' की उपाधि दी है:
सड़क और बिजली के क्षेत्र में सुधार: बुनियादी ढांचे (Infrastructure) में उन्होंने अभूतपूर्व सुधार किया है। ग्रामीण सड़कों का जाल बिछाया गया और 'हर घर बिजली' योजना ने राज्य के कोने-कोने तक बिजली पहुंचाई, जो पहले एक बड़ी चुनौती थी।
महिलाओं का सशक्तिकरण: पंचायती राज और नगर निकायों में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण लागू करना एक क्रांतिकारी कदम था। इसके अलावा, 'जीविका दीदियों' का समूह बनाकर उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास महिला सशक्तिकरण का एक सफल मॉडल रहा है।
कानून का राज स्थापित करने की कोशिश: 'जंगलराज' की छवि से बिहार को बाहर निकालने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आपराधिक मामलों में त्वरित सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन कर कई अपराधियों को सजा दिलाई गई, जिससे कानून व्यवस्था में सुधार आया।
आलोचनात्मक चुनौतियां और अनसुलझे मुद्दे
दो दशकों के शासन के बावजूद, कई ज्वलंत मुद्दे अभी भी बड़ी चुनौती बने हुए हैं, जिन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है:
शिक्षा व्यवस्था में अमूलचूल बदलाव: राज्य की शिक्षा व्यवस्था आज भी एक बड़ी चुनौती है। सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता, शिक्षकों की कमी और परीक्षाओं में पेपर लीक जैसी घटनाएं छात्रों के भविष्य को प्रभावित कर रही हैं। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।
बेरोजगारी और पलायन: बिहार से पलायन की समस्या एक राष्ट्रीय मुद्दा है। रोजगार के स्थानीय अवसरों की कमी के कारण युवा अन्य राज्यों में जाने को मजबूर हैं। जीविका दीदियों को शेष ₹2 लाख की दूसरी किस्त और उन्हें रोजगार शुरू करने में सहायता प्रदान कर निवेश और उद्योग को बढ़ावा देना आवश्यक है।
भ्रष्टाचार पर नियंत्रण: तमाम प्रयासों के बावजूद, सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या बनी हुई है, जो सुशासन के लक्ष्य को कमजोर करती है।
पूर्ण शराबबंदी की विफलता और माफिया राज: पूर्ण शराबबंदी लागू करने का कदम सामाजिक सुधार की दृष्टि से प्रशंसनीय था, लेकिन इसके कारण अवैध शराब का कारोबार बढ़ा है। साथ ही, बालू और मिट्टी खनन से जुड़े माफिया राज्य की विधि व्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती बन गए हैं। इन पर कठोर नियंत्रण आवश्यक है।
नीतीश कुमार का दसवी बार मुख्यमंत्री बनना उनकी राजनीतिक लचीलेपन और जनता के एक वर्ग में उनकी विश्वसनीयता का प्रमाण है। उनकी शालीन और विनम्र छवि उन्हें एक मिलनसार राजनीतिज्ञ बनाती है। हालांकि, इस ऐतिहासिक पारी में उन्हें सिर्फ अपनी प्रशंसनीय विरासत पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।
उन्हें बेरोजगारी, शिक्षा की गुणवत्ता, और शराबबंदी के कारण उत्पन्न हुए माफिया राज जैसी ज्वलंत चुनौतियों का निदान करना होगा। एनडीए के इस अपार बहुमत का उपयोग उन्हें अमूलचूल संस्थागत सुधार करने में करना होगा ताकि बिहार सही मायनों में विकास की राह पर अग्रसर हो सके। यह उनका 'अग्निपरीक्षा' है, जो यह तय करेगी कि क्या वह अपनी 'सुशासन बाबू' की छवि को अगले स्तर तक ले जा पाते हैं या नहीं।

Comments
Post a Comment