फसल बीमा योजना: सुधार की आवश्यकता और किसानों की अपेक्षाएँ !

   


यह योजना, जिसका मूल उद्देश्य किसानों को प्राकृतिक आपदाओं से उत्पन्न संकट से उबारना है, अपने वर्तमान स्वरूप में करोड़ों रुपये का प्रीमियम लेने के बावजूद किसानों के लिए राहत और विश्वास का स्रोत नहीं बन पा रही है, जिससे इसमें व्यापक नीतिगत सुधारों की मांग उठती है।

​1. क्षति आकलन की त्रुटिपूर्ण प्रक्रिया

​लेख का सबसे महत्वपूर्ण आलोचनात्मक बिंदु फसल नुकसान के वास्तविक आकलन की प्रक्रिया से संबंधित है।

​वर्तमान समस्या: फसल नुकसान का निर्धारण केवल उपग्रह (Satellite) से ली गई तस्वीरों पर आधारित होता है। यह एक दूरस्थ और सामान्यीकृत दृष्टिकोण है जो व्यक्तिगत खेत स्तर पर होने वाले वास्तविक नुकसान और उसकी तीव्रता को सटीक रूप से मापने में विफल रहता है।

​आवश्यक सुधार: क्षति निर्धारण की प्रक्रिया में उपग्रह तस्वीरों के साथ-साथ भौतिक सत्यापन (Physical Verification) और उपज परीक्षण (Crop Cutting Experiments) को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना चाहिए। यह सुनिश्चित करेगा कि मूल्यांकन जमीनी हकीकत पर आधारित हो, जिससे प्रभावित किसान को न्यायसंगत मुआवजा मिल सके।

​2. बीमा कंपनियों की जवाबदेही का अभाव

​फसल बीमा का पूरा तंत्र बीमा कंपनियों की निष्ठा और समयबद्धता पर निर्भर करता है, लेकिन वर्तमान में जवाबदेही की कमी एक बड़ी बाधा है।

​किसानों का मोहभंग: किसान करोड़ों रुपये का प्रीमियम देते हैं, लेकिन जब उन्हें सहायता की सबसे अधिक आवश्यकता होती है, तो उन्हें न तो राहत मिलती है और न ही व्यवस्था पर भरोसा। यह योजना का मूल उद्देश्य (किसानों को संकट से उबारना) विफल करता है और उन्हें "बीमा कंपनियों के जाल में फंसाने" जैसा प्रतीत होता है।

​दंडात्मक प्रावधानों की आवश्यकता: कंपनियों को किसानों के भुगतान में की गई अनुचित कटौती के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। इसके लिए एक स्पष्ट आर्थिक दंड (Financial Penalty) की व्यवस्था होनी चाहिए। यह प्रावधान बीमा कंपनियों को निर्धारित समय सीमा के भीतर और उचित मुआवजे का भुगतान करने के लिए बाध्य करेगा।

​फसल बीमा योजना का उद्देश्य स्पष्ट है—किसानों को सुरक्षा कवच प्रदान करना। हालांकि, जब तक व्यक्तिगत खेत स्तर पर पारदर्शितापूर्ण और भौतिक सत्यापन आधारित क्षति आकलन को लागू नहीं किया जाता, और जब तक बीमा कंपनियों की जवाबदेही तय कर उन पर सख्त आर्थिक दंड की व्यवस्था नहीं की जाती, तब तक यह योजना किसानों के लिए संकटमोचक बनने के बजाय केवल एक महंगा बोझ बनी रहेगी। नीतिगत सुधारों की आवश्यकता स्पष्ट है, ताकि करोड़ों का प्रीमियम देने वाला किसान राहत और विश्वास के साथ अपने भविष्य की खेती कर सके।

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