बुढ़ापा: बढ़ती एकाकीपन और निष्क्रियता की चुनौती!

   


 एकल परिवार की बहुलता के कारण आज बहुत से घरों में बुजुर्ग अकेले भी हैं, जिन्हें समय बिताना कठिन हो जाता है।

​बुजुर्ग दंपत्ति तो आपस में कुछ बोल-बतिया कर समय काट भी लेते हैं, लेकिन जिस घर में बुजुर्ग सिर्फ अकेले हो गए हैं, उन्हें एकाकीपन और निष्क्रियता घेर लेती है।

परिवारों के टूटने और बुजुर्गों के अकेलेपन की बढ़ती प्रवृत्ति।

 संयुक्त परिवारों का टूटना और एकल परिवारों की ओर झुकाव। बच्चे काम या अन्य कारणों से दूर चले जाते हैं, जिससे बुजुर्ग पीछे छूट जाते हैं।

जहाँ बुजुर्ग दंपत्ति होते हैं, वे एक-दूसरे का सहारा बनकर बातचीत और छोटी-मोटी गतिविधियों के माध्यम से समय गुजार लेते हैं, जिससे एकाकीपन कुछ हद तक कम होता है।

 लेकिन जहाँ केवल एक ही बुजुर्ग अकेले रह गए हैं (जीवनसाथी के न रहने पर), वहाँ स्थिति अत्यंत कठिन हो जाती है। वे न केवल एकाकीपन महसूस करते हैं, बल्कि जीवन में किसी गतिविधि या उद्देश्य की कमी के कारण निष्क्रियता  भी उन्हें घेर लेती है।

​यह निष्क्रियता और एकाकीपन उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डालती है, जिससे अवसाद और अन्य स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। समाज को इस चुनौती पर ध्यान देना होगा और बुजुर्गों को सामाजिक जुड़ाव और सार्थक गतिविधियों के अवसर प्रदान करने होंगे।

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