"जीविका दीदी" सहायता: सशक्तीकरण या बढ़ता वित्तीय बोझ?
वित्तीय बोझ का विश्लेषण योजना का वित्तीय आकार काफी बड़ा है। यदि 1.40 करोड़ जीविका दीदियों को {₹}10,000 की शुरुआती सहायता दी गई है, तो राज्य पर कुल ₹ 14,000 करोड़ का वित्तीय बोझ (अनुदान के रूप में) आया है (लगभग {1.21} करोड़ महिलाओं को {₹}12,100 करोड़ दिए जाने की जानकारी है)। सबसे बड़ा वित्तीय जोखिम ₹ 2 लाख की अतिरिक्त सहायता (लोन) में निहित है। कुल संभावित कर्ज: यदि भविष्य में सभी 1.40 करोड़ जीविका दीदियों में से आधे को भी {₹}2 लाख का कर्ज दिया जाता है, तो यह राशि ₹ 1,40,000 करोड़ (1.4 करोड़ 0.5 {₹}2 लाख) होगी। यह राशि बिहार के वार्षिक बजट के एक बड़े हिस्से के बराबर हो सकती है और राज्य के पहले से ही बढ़ते कर्ज को अत्यधिक बढ़ा देगी। यह {₹}2 लाख की राशि लोन के रूप में दी जाएगी, जिसे ब्याज सहित लौटाना होगा। यदि ये सूक्ष्म-उद्यम सफल नहीं होते हैं, तो कर्ज की वसूली एक बड़ी चुनौती बन जाएगी, जिससे राज्य के नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स (NPA) बढ़ सकते हैं और अंततः राज्य की वित्तीय स्थिरता प्रभावित हो सकती है। राजनीतिक दबाव में, भविष्य में इस कर्ज को माफ़ करने की माँग उठ सकती है । कर्ज माफ़ी सीधे तौर पर राज्य के खजाने पर बोझ बढ़ाएगी, जिसका अर्थ है कि यह पैसा अंततः करदाताओं का होगा। यह वित्तीय दृष्टिकोण से इसके दूरगामी परिणाम चिंताजनक हो सकते हैं। ₹ 10,000 का अनुदान निवेश है, लेकिन ₹ 2 लाख का कर्ज एक जोखिम भरा दाँव है। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि कर्ज की राशि सिर्फ प्रगतिशील और सफल उद्यमिता के लिए ही दी जाए, और कठोर निगरानी और प्रशिक्षण के माध्यम से कर्ज चुकाने की क्षमता में वृद्धि हो। अन्यथा, जीविका दीदियों को सशक्त बनाने की यह पहल बिहार के वित्तीय स्वास्थ्य के लिए दीर्घकालिक बोझ बन सकती है। भारत पर बढ़ा कर्ज, 205 लाख करोड़ पहुंचा ।
भारत के प्रति व्यक्ति कर्ज के कुछ अनुमान मार्च 2025 तक {₹}1,25,000 तक बताते हैं, जबकि बिहार के संदर्भ में, फरवरी 2025 के बजट से पहले प्रति बिहारी पर ₹}4,000 से अधिक कर्ज का अनुमान लगाया गया था।

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