विकास की दौड़ में पिछड़ता बिहार: एक विश्लेषण!-प्रो प्रसिद्ध कुमार।

   


 राज्य के विकास के बुनियादी मुद्दे तत्काल लाभ में पीछे छूट गए, जिसका खामियाजा बिहार को भुगतना पड़ेगा।

​बिहार, जिसकी ऐतिहासिक जड़ें मगध और पाटलिपुत्र के गौरवशाली अतीत में गहरी हैं, वर्तमान में विकास सूचकांकों पर देश के सबसे पिछड़े राज्यों में से एक है।  प्रति व्यक्ति आय और गरीबी: निम्नतम पायदान पर

​बिहार की अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी विडंबना इसकी निम्न प्रति व्यक्ति आय और उच्च गरीबी दर है, जो इसे राष्ट्रीय परिदृश्य में सबसे निचले स्थान पर रखती है।

​प्रति व्यक्ति आय - वित्तीय वर्ष 2023-24 में बिहार की प्रति व्यक्ति आय (वर्तमान मूल्य पर) लगभग ₹66,828 रुपये दर्ज की गई है। यह राष्ट्रीय औसत ₹1,14,710 रुपये (2023-24) से काफी कम है। स्थिर मूल्य के आधार पर यह आय और भी कम होकर लगभग ₹36,333 रुपये है।

​बहुआयामी गरीबी -आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, देश की 16% से 25% गरीब आबादी बिहार में रहती है। पटना (₹1,21,396) और शिवहर (₹19,561) जैसे जिलों में आय की खाई राज्य के भीतर की बड़ी असमानता को भी दर्शाती है।

​रोजगार और पलायन की विकट समस्या

​कम औद्योगिक विकास और कृषि पर अत्यधिक निर्भरता के कारण रोजगार के अवसरों की कमी एक गंभीर समस्या है, जिसने बड़े पैमाने पर पलायन को जन्म दिया है।

​बेरोजगारी , पलायन : रोजगार की तलाश में बड़े पैमाने पर पलायन होता है। 2011 की जनगणना के अनुसार, 2001-2011 के बीच 93 लाख बिहारियों ने दूसरे राज्यों में पलायन किया, जिसका मुख्य कारण रोजगार (55% लोग) था। ई-श्रम पोर्टल के आंकड़ों के अनुसार, 2 करोड़ 90 लाख से अधिक लोग नौकरी के लिए दूसरे राज्यों में जा चुके हैं, जिनमें 90% मजदूरों की मासिक आय ₹10,000 से कम है।

​ शिक्षा और स्वास्थ्य: दयनीय स्थिति

​शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में बिहार की स्थिति राष्ट्रीय औसत से बहुत पीछे है, जो मानव पूंजी के विकास को बाधित कर रही है।

​शिक्षा -  केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, 61.8% साक्षरता दर के साथ बिहार देश में सबसे निचले पायदान पर है।

 सरकारी स्कूलों में कक्षा 5 के छात्रों के पढ़ने का स्तर 41.2% है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 44.8% है।

 स्वास्थ्य सूचकांक रिपोर्ट (नीति आयोग और स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी) में बिहार 19वें स्थान पर है। स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और कुपोषण की समस्या गंभीर है:

​कुपोषण - राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के अनुसार, बिहार में 5 वर्ष से कम आयु के 42.9% बच्चे नाटे हैं और 16.9% बच्चे कमज़ोर  हैं। यह कुपोषण का एक गंभीर स्तर है।

​उपरोक्त आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि बिहार बुनियादी मानवीय और आर्थिक मानकों पर फिसड्डी है। इतनी गंभीर समस्याओं के बावजूद हाल के चुनावों में लोगों का मतदान पैटर्न अक्सर इन मुद्दों को सीधे तौर पर क्यों नहीं दर्शाता है? यह राजनीतिक विमर्श में जाति, पहचान और तात्कालिक लाभ के मुद्दों के हावी होने की ओर संकेत करता है, जिससे विकास के बुनियादी मुद्दे अक्सर पीछे छूट जाते हैं। यह विरोधाभास राज्य की सामाजिक और राजनीतिक जटिलता का प्रमाण है।

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