शिक्षा का सिंदूर: मंडप से परीक्षा हॉल तक एक नवविवाहिता का प्रण!-प्रो प्रसिद्ध कुमार।

    




@Rlsy college, Anisabad​ कर्तव्य की वेदी पर नवजीवन का संकल्प !

​दिनांक 1 दिसंबर, वह दिन जब विवाह की पवित्र अग्नि शांत होती है और जीवन के नए अध्याय का श्रीगणेश होता है। परंतु राम लखन सिंह यादव कॉलेज, अनीसाबाद, पटना के प्रांगण में, एक अद्भुत दृश्य ने सबके हृदय को छू लिया। यह किसी कथा का अंश नहीं, बल्कि शिक्षा के प्रति अटूट समर्पण की साक्षात झाँकी थी।

​सुबह के 9.30 बजे। स्नातक सेमेस्टर-5 की परीक्षा के संचालन हेतु, मैंने और अंग्रेजी की प्रोफेसर कुमारी निधि ने हॉल संख्या 1 में प्रवेश किया। वातावरण में परीक्षा की चिरपरिचित गंभीरता छाई हुई थी, किंतु एक कोना ऐसा था जो अपनी आभा से पूरे कक्ष को एक क्षण के लिए अचंभित कर गया।

​ लाल जोड़ा और ज्ञान की ज्योत

​सामने की पंक्ति में एक छात्रा बैठी थी—वह मात्र परीक्षार्थी नहीं, साक्षात् नव-वधू का प्रतिरूप थी। उसकी मांग में सिंदूर की लालिमा, मानो सौभाग्य का सूर्य उदय हुआ हो; गले में पड़ी पीली पट्टी (दुपट्टा), नव-परिणय का पावन बंधन दर्शा रही थी। हाथों में कंगन और चूड़ियाँ, विवाह की झनकार अभी भी समेटे हुए थीं। वह 'लाल जोड़े' में ऐसे सुशोभित थी, जैसे प्रेम और संकल्प का संगम हो।

​मेरे मन में उठे जिज्ञासा के भाव को प्रो. निधि ने एक महिला की सहजता से शांत किया। जानकारी मिली कि विवाह की अंतिम रस्में भोर में पूरी हुई थीं। बिना क्षण भर का विलंब किए, इस जुझारू बेटी ने सुबह चार बजे स्वयं को सज्जित किया और मंडप की सुगंध को अपने साथ लेकर, सीधे परीक्षा हॉल के लिए निकल पड़ी।

​यह निर्णय साधारण नहीं था; यह कर्तव्य और ख्वाहिश के बीच का सेतु था। जिस समय अधिकांश वधुएँ थकान की चादर ओढ़कर विश्राम करती हैं, उस समय यह छात्रा पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित परीक्षा को ही अपना सर्वोच्च धर्म मान रही थी।

​ पति का संबल, पिता का गर्व

​जब यह प्रतिज्ञा की मूर्ति ज्ञान की कसौटी पर अपनी कलम चला रही थी, तब कॉलेज परिसर के बाहर उनके पतिदेव धैर्य की शिला बनकर खड़े थे। उनका साथ देना मात्र प्रतीक्षा नहीं था, बल्कि अपनी पत्नी के शैक्षणिक सपनों को दिया गया एक मौन समर्थन था।

​परीक्षा समाप्त होते ही, यह युगल रिसेप्शन की तैयारी के लिए ससुराल की ओर रवाना हुआ। इस पूरी घटना के मूल में, छात्रा के किसान पिता का वह कथन है, जो हर भारतीय अभिभावक के लिए प्रेरणा है: "मुझे अपनी बेटी के इस हौसले पर गर्व है।" उन्होंने बेटी के इस कार्य को जिम्मेदारियों को संतुलित करने का अनुपम उदाहरण बताया। यह दिखाता है कि शिक्षा के प्रति उसकी गंभीरता, विवाह के अलंकार से भी अधिक मूल्यवान है।

​कॉलेज के प्राचार्य प्रो. सुरेंद्र प्रसाद ने छात्रा की इस प्रतिबद्धता को शिक्षा के प्रति रूचि का जीवंत प्रमाण मानते हुए बधाई दी।

​यह छात्रा केवल एक परीक्षा देने नहीं आई थी, बल्कि उसने समाज को यह संदेश दिया कि शिक्षा का संकल्प, जीवन के किसी भी उत्सव से अधिक महत्वपूर्ण है। उसका लाल जोड़ा, अब मात्र विवाह का प्रतीक नहीं, बल्कि ज्ञान की प्राप्ति के लिए किए गए दृढ़ संकल्प की विजय पताका बन गया है।

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