उच्च शिक्षा में सामाजिक न्याय: भागीदारी और परिवर्तन !-प्रो प्रसिद्ध कुमार।
भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों (जैसे IIT, IIM, NEET, मेडिकल साइंसेज) में दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की बढ़ती भागीदारी सामाजिक न्याय की दिशा में एक ऐतिहासिक बदलाव है। 1990 से पहले की तुलना में, अब इन वर्गों की हिस्सेदारी 60 फ़ीसदी से ज्यादा हो गई है।
प्रमुख कारण और ऐतिहासिक आधार
इस परिवर्तन के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:
मंडल कमीशन का प्रभाव:
1990 के दशक में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए 27% आरक्षण लागू होने से उच्च शिक्षा के द्वार OBC समुदाय के लिए व्यापक रूप से खुले।
संविधान की शक्ति (डॉ. अम्बेडकर):
संविधान द्वारा सुनिश्चित समानता और आरक्षण के प्रावधानों ने अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के उत्थान को मजबूत आधार दिया।
जागरूकता और सामाजिक आंदोलन:
लालू प्रसाद यादव जैसे नेताओं के नारों (जैसे "पढ़ना-लिखना सीखो...") ने हाशिये पर पड़े समुदायों में शिक्षा के प्रति आत्मविश्वास और चेतना को बढ़ाया।
तथ्यात्मक डेटा: भागीदारी में वृद्धि
अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण (AISHE) के डेटा के अनुसार, उच्च शिक्षा में SC/ST/OBC छात्रों की हिस्सेदारी में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है:
SC/ST/OBC वर्ष 2010 -11 में 43.1फीसदी
वर्ष 2022 -23 में 60 .8 फ़ीसदी हिस्सेदारी है।
सामान्य 2010-11में 57 फ़ीसदी
वर्ष 2022 -23 में 39 फ़ीसदी है।
यह आंकड़े बताते हैं कि सामाजिक आंदोलनों ने उच्च शिक्षा समावेशी विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

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