कृषि में होम्योपैथी: एक वरदान, उपज में बढ़ोतरी !
रासायनिक निर्भरता से मुक्ति और जल संरक्षण!
कृषि क्षेत्र में होम्योपैथी का सफल प्रयोग किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण वरदान साबित हो रहा है। यह एक ऐसा नवाचार है जो न केवल फसलों की गुणवत्ता और उपज को बढ़ा रहा है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी एक क्रांतिकारी कदम है।
कृषि-होम्योपैथी की सफलता एक वरदान क्यों?
होम्योपैथी का यह नया प्रयोग, जिसे पुटुवेरी में शोधकर्ताओं ने किसानों के साथ मिलकर किया है, पारंपरिक खेती की कई समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है:
जल संरक्षण और प्रदूषण में कमी:
खेती के लिए पानी की खपत घटी है।
जल प्रदूषण कम हुआ है।
भूजल स्तर में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
जल संकट और प्रदूषण आज की बड़ी समस्याएँ हैं। इस पद्धति का यह पहलू इसे एक बड़ा पर्यावरणीय वरदान बनाता है।
मिट्टी और फसल स्वास्थ्य में सुधार:
फसलों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ी है, जिससे वे रोगों से लड़ने में अधिक सक्षम हो जाते हैं।
मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए रसायनों पर निर्भरता कम हुई है।
पद्धति मिट्टी के प्राकृतिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करती है, जो दीर्घकालिक टिकाऊ कृषि के लिए महत्वपूर्ण है।
उपज और सफलता का आकलन
परियोजना का व्यापक समर्थन: वर्ष 2018 में शुरू हुई इस परियोजना की सफलता का प्रमाण यह है कि इसे NABARD (नाबार्ड) का समर्थन मिला। NABARD जैसी शीर्ष संस्था का समर्थन मिलना दर्शाता है कि इस पद्धति में कृषि उत्पादकता और वित्तीय स्थिरता में सुधार लाने की व्यापक क्षमता है।
किसानों का सक्रिय सहयोग: शोधकर्ताओं ने किसानों के साथ मिलकर जैविक खेती में यह कदम उठाया है, जिसका अर्थ है कि किसान स्वयं इस पद्धति के लाभ को देख और महसूस कर रहे हैं।
रसायन मुक्त उपज: रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर निर्भरता कम होने से, उत्पादित फसलें न केवल अधिक स्वास्थ्यवर्धक होंगी, बल्कि उनकी बाजार में भी अच्छी कीमत मिलने की संभावना है।
यह नवाचार कृषि क्षेत्र के लिए एक वरदान है जो उत्पादन की गुणवत्ता को बेहतर बनाने, पर्यावरण की रक्षा करने और किसानों की आय को बढ़ाने की दिशा में एक सकारात्मक बदलाव ला रहा है।

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