कला और संस्कृति: नई शिक्षा नीति का अधूरा अध्याय !
भारत की नई शिक्षा नीति (NEP), 2020 को भारतीय ज्ञान परंपरा और दर्शन, विशेष रूप से सत्यम् शिवम् सुंदरम् के सिद्धांतों पर आधारित एक दूरदर्शी कदम माना गया है। 'सत्यम्' (ज्ञान और तथ्य), 'शिवम्' (नैतिकता और कल्याण), और 'सुंदरम्' (सौंदर्यशास्त्र और कला) के इस त्रय ने सदैव भारतीय चिंतन को निर्देशित किया है।
NEP का मुख्य उद्देश्य भी शिक्षा को समग्र, बहु-विषयक और भारतीय जड़ों से जुड़ा बनाना है। यह नीति निश्चित रूप से शिक्षा के मूलभूत सुधारों, जैसे कि लचीली पाठ्यक्रम संरचना और महत्वपूर्ण सोच के विकास की दिशा में एक बड़ा अवसर है।
इस नीति का सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण अवसर यह था कि क्षेत्रीय और लोक कलाओं को शिक्षा की मुख्यधारा के पाठ्यक्रम का अभिन्न अंग बनाया जाए।
गौरव और अपनापन विकसित करना: विद्यार्थियों में अपने समाज, अपनी संस्कृति और परंपरा के प्रति गर्व और अपनापन की भावना विकसित करना।
समग्र विकास: कला को केवल एक अतिरिक्त गतिविधि के बजाय, रचनात्मकता, समस्या-समाधान और भावनात्मक बुद्धिमत्ता के विकास के लिए एक आवश्यक विषय के रूप में स्थापित करना।
दुर्भाग्य से, ज़मीनी स्तर पर और वास्तविक पाठ्यक्रम के समायोजन में, यह विचार "अभी तक दस्तावेजों में सीमित" है। कला, संस्कृति, और भारतीय दर्शन के मूलभूत सिद्धांत 'सुंदरम्' को अभी भी वह केंद्रीय स्थान नहीं मिला है, जिसका वह हकदार है।
भारतीय दर्शन में, कला केवल मनोरंजन नहीं है; यह ज्ञान प्राप्त करने (सत्यम्) और जीवन को कल्याणकारी (शिवम्) बनाने का एक माध्यम है। हमारे पास हस्तकला, संगीत, नृत्य, नाट्य, चित्रकला और अन्य लोक रूपों का एक समृद्ध खजाना है जो हमारी क्षेत्रीय भाषाओं और ज्ञान को जीवित रखता है। इन कला रूपों को स्कूली शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर, केवल "विकल्प" के रूप में नहीं, बल्कि आवश्यक पाठ्यक्रम के रूप में शामिल करना समय की मांग है।
नई शिक्षा नीति के लक्ष्यों को पूरी तरह से साकार करने के लिए, निम्नलिखित कदम उठाने आवश्यक हैं:
शिक्षकों का प्रशिक्षण: कला और शिल्प को पढ़ाने के लिए योग्य शिक्षकों को नियुक्त किया जाए और वर्तमान शिक्षकों को क्षेत्रीय कला रूपों के साथ पाठ्यक्रम को एकीकृत करने के लिए प्रशिक्षित किया जाए।
कला-एकीकृत शिक्षा विज्ञान, गणित, और सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों को पढ़ाने के लिए कला को एक उपकरण के रूप में उपयोग किया जाए। उदाहरण के लिए, गणित की अवधारणाओं को रंगोली या पारंपरिक वास्तुकला के माध्यम से सिखाना।
स्थानीय कलाकारों का जुड़ाव: स्कूलों को स्थानीय कारीगरों, लोक कलाकारों और सांस्कृतिक विशेषज्ञों के साथ जोड़ना चाहिए, ताकि विद्यार्थी सीधे अपनी विरासत से सीख सकें।
प्रमाणन और मूल्यांकन: कला-आधारित कौशल को नियमित अकादमिक विषयों के बराबर महत्व देते हुए, उनके मूल्यांकन के लिए स्पष्ट मानक और प्रमाणन प्रक्रियाएँ स्थापित की जाएँ।

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