भारतीय खाद्य प्रणाली की चुनौतियाँ ! बढ़ती कीमतें और पोषण का संकट ! -प्रो प्रसिद्ध कुमार।
महंगाई सीधे भारतीय रसोई को प्रभावित करती है। दाल, खाद्य तेल, फल, सब्ज़ियाँ और दूध जैसी आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में लगातार वृद्धि ने संतुलित भोजन के बजट को बढ़ा दिया है।
आय पर प्रभाव: एक औसत भारतीय परिवार की मासिक आय का बड़ा हिस्सा केवल कैलोरी-आधारित भोजन पूरा करने में खर्च हो रहा है, जबकि पौष्टिक भोजन उनकी पहुँच से दूर होता जा रहा है।
कुपोषण के आयाम: भोजन केवल बाज़ार व्यवस्था का विषय नहीं है, बल्कि इसे एक सामाजिक सुरक्षा अधिकार के रूप में देखा जाना चाहिए। यह खाद्य सुरक्षा और कुपोषण की समस्या को और गहरा करता है।
कृषि और जलवायु अनिश्चितता
प्राकृतिक आपदाएं: असमय बारिश, सूखा, बाढ़ और तापमान में बदलाव जैसी मौसमी घटनाएँ फसल उत्पादकता को प्रभावित करती हैं, जिससे बाज़ार में कीमतें बढ़ती हैं।
बाज़ार अस्थिरता: यह अस्थिरता खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करती है और गरीबों को पौष्टिक भोजन से और भी दूर ले जाती है।
पोषण प्राथमिकताओं में कमी और आहार का असंतुलन
भारतीय खाद्य प्रणाली की संरचनात्मक कमियों को उजागर करता है:
केंद्रित वितरण: वर्तमान प्रणाली मुख्य रूप से अनाज-आधारित है, जिसमें गेहूँ और चावल पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जाता है।
पोषण की अनदेखी: शरीर को विभिन्न पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, लेकिन फल, सब्ज़ियाँ, दालें और डेयरी जैसे घटक सार्वजनिक वितरण प्रणाली या सरकारी पोषण कार्यक्रमों का हिस्सा नहीं बन पाए हैं।
* अपूर्ण योजनाएँ: इसका परिणाम यह है कि वर्तमान योजनाएँ भोजन तो देती हैं, पर पूर्ण पोषण सुनिश्चित नहीं कर पाती हैं।
शहरीकरण, जीवनशैली और 'डबल बर्डन'
शहरी जीवनशैली: शहरी क्षेत्रों में भोजन की उपलब्धता और गुणवत्ता दोनों की समस्या है। समय की कमी, तनाव और तेज़ बाज़ार-चालित संस्कृति के कारण डिब्बाबंद खाद्य, जंक फूड और मीठे पेय रोज़मर्रा के भोजन का हिस्सा बन रहे हैं।
कुपोषण का दोहरा बोझ: एक तरफ़ कुपोषण है, तो दूसरी तरफ़ अतिपोषण है। ये दोनों स्थितियाँ स्वास्थ्य जोखिमों को बढ़ाती हैं और एक जटिल चुनौती पेश करती हैं।
भारत में खाद्य सुरक्षा और पोषण केवल आर्थिक नहीं, बल्कि एक जटिल सामाजिक, पर्यावरणीय और नीतिगत चुनौती है। खाद्य महंगाई, कृषि अनिश्चितता और अनाज-केंद्रित वितरण प्रणाली के कारण संतुलित आहार गरीबों की पहुँच से बाहर हो रहा है, जिससे कुपोषण का संकट गहरा रहा है। यह ज़रूरी है कि नीतियों का ध्यान कैलोरी से हटकर पोषक-तत्व-समृद्ध भोजन तक पहुँचे।

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