गलतियाँ: शर्म या सीखने का अवसर? एक मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण !

  


​हम सब एक ऐसे सामाजिक ताने-बाने में पले-बढ़े हैं जहाँ गलती को अक्सर एक नकारात्मक घटना के रूप में देखा जाता है। एक बच्चे द्वारा कुछ गिरा देना हो या किसी कर्मचारी द्वारा कोई मामूली भूल, तुरंत "ताना" या फटकार मिलने की संभावना अधिक होती है।

​मनोविज्ञान की दृष्टि से, यह दृष्टिकोण सीखने और विकास की प्रक्रिया को गंभीर रूप से बाधित करता है।

​दंड और शर्म का मनोवैज्ञानिक प्रभाव

​जब गलतियों को दंड या शर्म से जोड़ा जाता है, तो यह व्यक्ति के भीतर 'गलती करने का डर' पैदा करता है।

​रक्षात्मक व्यवहार - डर के कारण लोग अपनी गलतियों को छिपाना शुरू कर देते हैं। इससे वे समस्या की जड़ को पहचानने और उसे ठीक करने का अवसर खो देते हैं।

​आत्म-सम्मान पर चोट -लगातार शर्मिंदा महसूस करने से व्यक्ति की आत्म-क्षमता और आत्मविश्वास कम होता है। वे खुद को "अयोग्य" या "नाकाम" समझने लगते हैं।

​विकास अवरुद्ध - सीखने की प्रक्रिया रुक जाती है। जब ध्यान सुधारने पर नहीं, बल्कि सजा से बचने पर होता है, तो नई चुनौतियों को लेने की हिम्मत नहीं होती।

 "अगर उस गलती को समझने का अवसर माना जाए, तो वही क्षण सीखने का बन सकता है।" यह एक विकास की मानसिकता का आधार है, जहाँ असफलता अंतिम परिणाम नहीं, बल्कि आगे बढ़ने के लिए जरूरी फीडबैक होती है।

​1. सुनना  - पहली सीढ़ी

 " सुनना उस सीख की पहली सीढ़ी है।" मनोवैज्ञानिक रूप से, इसका अर्थ है सहानुभूतिपूर्ण अवलोकन 

​निर्णय नहीं, समझ: हमें गलती करने वाले को तुरंत 'बुरा' या 'लापरवाह' घोषित करने के बजाय, यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि गलती क्यों हुई। क्या यह ज्ञान की कमी थी, प्रक्रियागत दोष, या सिर्फ एक असावधानी?

​सुरक्षित स्थान का निर्माण -जब व्यक्ति जानता है कि उसे सुना जाएगा, ताना नहीं दिया जाएगा, तो वह गलती को खुलकर स्वीकार करने और उसका विश्लेषण करने में सहज महसूस करता है।

​2. फीडबैक लूप  का महत्व

​गलती के बाद दंड देने के बजाय, एक प्रभावी फीडबैक लूप बनाना चाहिए:

​गलती को पहचानें : तटस्थ भाषा में बताएं कि क्या गलत हुआ।

​विश्लेषण करें , पूछें कि ऐसा क्यों हुआ।

​समाधान खोजें : गलती करने वाले को खुद समाधान सुझाने के लिए प्रेरित करें। इससे वह जिम्मेदारी लेता है और समस्या को गहराई से समझता है।

​यह दृष्टिकोण न केवल व्यक्तिगत विकास को बढ़ावा देता है बल्कि एक ऐसा कार्यस्थल या घर का माहौल भी बनाता है जहाँ जोखिम लेने और नवाचार को प्रोत्साहित किया जाता है। जब गलतियाँ छिपाने के बजाय चर्चा का विषय बनती हैं, तभी हम सामूहिक रूप से समझ के साथ आगे बढ़ते हैं और व्यक्तिगत तथा सामाजिक दोनों स्तरों पर परिपक्व होते हैं।

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