फर्जी IAS: एमएससी स्टूडेंट से ₹5 करोड़ की ठगी तक—गौरव सिंह का 'AI और रौब' का साम्राज्य बेनकाब!
चार राज्यों में फैला जाल, असली SDM को जड़े थप्पड़, और सरकारी टेंडर के नाम पर करोड़ों का चूना; यह 'फर्जी अधिकारी' नहीं, पूरी 'ठगी की इंडस्ट्री' था।
गोरखपुर पुलिस ने एक ऐसे जालसाज को गिरफ्तार किया है, जिसने फर्जी IAS अधिकारी बनकर देश के चार राज्यों—उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और झारखंड—में ठगी का एक विशाल और सनसनीखेज नेटवर्क खड़ा कर लिया था। बिहार के सीतामढ़ी के मूल निवासी गौरव कुमार सिंह उर्फ़ ललित किशोर का यह साम्राज्य, महज दिखावे और रौब के दम पर करोड़ों की वसूली कर रहा था। उसकी हकीकत जान कर बड़े-बड़े अधिकारी भी सकते में हैं।
टीचर से 'आईएएस साहब' तक: रौब और प्रोटोकॉल का खेल
गौरव सिंह की कहानी एक साधारण एमएससी छात्र और कोचिंग टीचर से शुरू होती है। लेकिन कुछ ही सालों में उसने खुद को 'वीआईपी' बनाने का रास्ता चुना।
नकली रुतबा: दिन में साधारण, लेकिन रात होते ही वह लाल-नीली बत्ती लगी इनोवा में 'IAS साहब' बनकर निकलता था। उसके पीछे 6-7 लड़कों का काफिला चलता था, जो बॉडीगार्ड जैसा प्रतीत होता था।
दबंग एंट्री: सरकारी दफ्तरों में उसकी एंट्री दबंग होती थी, जहाँ फर्जी प्रोटोकॉल और वीआईपी ट्रीटमेंट के कारण लोग उसे सच का अधिकारी मानकर झुक जाते थे।
निजी जीवन में ठगी: इस फर्जी पहचान के दम पर उसने चार गर्लफ्रेंड बनाईं, जिनमें से पुलिस जांच के अनुसार तीन ने गर्भवती होने का दावा किया है।
असली SDM से टकराव: जब रौब पड़ा भारी
गौरव का आत्मविश्वास इतना बढ़ चुका था कि एक बार बिहार के भागलपुर में 'निरीक्षण' के बहाने पहुंचने पर उसकी टक्कर असली SDM (सब-डिवीजनल मजिस्ट्रेट) से हो गई।
जब असली SDM ने उससे बैच और पोस्टिंग के बारे में सवाल किए, तो नकाब उतरने के डर से गौरव भड़क गया और उसने असली अधिकारी को दो थप्पड़ जड़ दिए। इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि SDM ने इसकी शिकायत तक नहीं की, जिससे फर्जी IAS का 'भौकाल' और बढ़ गया।
AI के हथियार से करोड़ों की ठगी
गौरव का मुख्य निशाना बड़े व्यापारी और बिल्डर थे, जिन्हें वह सरकारी टेंडर और बड़े कॉन्ट्रैक्ट दिलाने का झांसा देता था।
डिजिटल अपराध: ठगी को पुख्ता बनाने के लिए वह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का इस्तेमाल करता था। AI की मदद से वह फर्जी सरकारी फाइलें, आदेश पत्र, टेंडर कॉपियां और नोट शीट तैयार करता था। ये दस्तावेज़ इतने 'रियल' दिखते थे कि बड़े-बड़े व्यापारी भी आसानी से उसके झांसे में आ जाते थे।
सबसे बड़ी लूट: एक मामले में, उसने एक व्यापारी को ₹450 करोड़ का टेंडर दिलाने का लालच दिया और बदले में उससे ₹5 करोड़ कैश और दो इनोवा कारें रिश्वत के नाम पर ऐंठ लीं।
गैंग का टेक्निकल ब्रेन: साला था मास्टरमाइंड
गौरव यह सब अकेले नहीं कर रहा था। गोरखपुर के परमानंद गुप्ता के साथ मिलकर वह चार राज्यों में नेटवर्क चला रहा था। इस गैंग का सबसे महत्वपूर्ण सदस्य गौरव का साला अभिषेक था। सॉफ्टवेयर का जानकार अभिषेक ही IAS की फर्जी आईडी, नेमप्लेट, लेटरहेड, डिजिटल सिग्नेचर और AI-जनरेटेड सरकारी फाइलें बनाता था।
यह गैंग 'टेक्निकल ज्ञान, रौब और मनोवैज्ञानिक दबाव' का एक घातक कॉम्बिनेशन था।
सबक: सजगता ही बचाव है
पुलिस ने गौरव सिंह के खिलाफ कई बड़े खुलासे किए हैं, जिनमें करोड़ों की ठगी, AI का इस्तेमाल, फर्जी प्रोटोकॉल और निजी संबंधों में धोखे शामिल हैं।
यह घटना आम जनता और खासकर व्यापारियों के लिए एक बड़ी चेतावनी है कि किसी भी सरकारी अधिकारी की विश्वसनीयता सिर्फ दिखावे, लाल-नीली बत्ती या बड़े काफिले से नहीं आँकी जा सकती। किसी भी बड़े सरकारी टेंडर या कॉन्ट्रैक्ट के लिए संदेहास्पद कैश डील से बचें और दस्तावेजों की सत्यता की जांच सरकारी पोर्टल्स पर अवश्य करें।

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