हर चुनाव एक सबक है-, सनक नहीं - प्रसिद्ध यादव
जनता को ठेंगा दिखाहरने वाले को ही जनता ठेंगा काट दी है।यह सबक केवल पराजितों के लिए ही नहीं है, बल्कि जीतने वाले के लिए भी है। जीतते ही कुछ लोगों के बोल बदल गये हैं। कुछ लोग जीत का श्रेय पैसों को दे रहे हैं तो कुछ लोग अपनी काबलियत की। एक आवेदन लिखने के लिए कह दें तब सब काबिलियत निकल जायेगी। मान सम्मान पैसों से नही मिलती है, व्यवहार से मिलता है। अगर सनकी रवैया रहा तब जनता तिरस्कार कर ही सकती है। इसे कौन रोक सकता है, दरवाजे पर एक कुत्ता भी नहीं जाएगा, न कोई दरवाजे पर बुलायेगा।तब कैसा लगेगा।जहाँ की जनता जागरूक है, उसके अधिकार का हनन कोई नही कर सकता, किसी जनप्रतिनिधियों में दम नही है। कुशल व्यवहार की बात मैं बराबर करता हूँ, लेकिन भैंस के आगे बीन बजाये, बैठी भैंस पघुराये वाली बात है। पराजित लोगों से पूछें कि वे कैसे पराजित हुए, इसका उत्तर उन्हें मालूम है, लेकिन नई नवेली अभी नखरे दिखा रहे हैं।बस एक रात की तो बात है, सारे नखरे खत्म हो जाएंगे। जीतने वाले न कोई तीसमारखाँ नही है और हारने वाले कोई मिट्टी में नही मिला है। कितने जीतने वाले और गाड़ी में बोर्ड लगाकर घूमने वाले को पैदल देख रहा हूँ, कोई नोटिस लेने वाले नही है। ऐसी स्थिति नए लोगों को न हो जाये संभल जाइए। याद रखें! हर जीत में एक हार और हर हार में एक जीत छुपी है। 1977 के जेपी आंदोलन में करीब करीब लोग जीत गए थे, नीतीश कुमार हार गए थे,
1980 में भी हार गए थे, लेकिन आज बिहार में 16 साल से सीएम हैं। इनसे पहले और ज्यादा बार जीतने वाले को लोग जानते भी नहीं है। जीतने के साथ नेतृत्व क्षमता विकसित करने की जरूरत है, नही तो उपलब्धि भूतपूर्व से ज्यादा कुछ नहीं मिलेगा। मेरी बातें कड़वी सच्चाई है।
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