आज 40 साल हुए जीवन संगनी के साथ! / प्रसिद्ध यादव-प्रभा देवी।
परस्त्रियं मातूसमां समीक्ष्य स्नेहं सदा चेन्मयि कान्त कूर्या।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: सप्तमत्र कन्या।।
विवाह जीवन के 16 संस्कारों में से एक है। शादी करते समय होने वाले पति से 7 वचन लेती है तब वामांगी बनती है।व्यवहारिक जीवन में हम भूल जाते हैं।ऊपर में सातवां वचन लिखा हूँ। एक एक दिन कैसे कटे? पता ही न चला। ऐसी बात नहीं है अमूनन आम लोग ये बातें लिखते होंगे।मेरा एक एक पल कितना संघर्षमय , अनिश्चितता में बीते वो हम दोनों जानते हैं। मेरा सौभाग्य रहा कि इतने वर्षों में कुछ मांगी नहीं, कोई इच्छा नहीं हुई और दुर्भाग्य रहा कि मैं कुछ दिया नहीं।यूं कहें तो मेरे पास कभी कुछ देने के लिए रहा नहीं। मेरा जीवन पारिवारिक कम बिता ज्यादा सामाजिक, राजनीतिक, कृषि , शैक्षणिक कार्यों में बिता। जीवन में बसंत क्या होता है नहीं मालूम हुआ, पतझड़ की तरह रहा। जीवन कष्टों से जूझते रहा और गाड़ी चलती रही। एक बात हमदोनों में सामान्य थी कि न ज्यादा किसी चीज की चाहत, न विलासिता पूर्ण जीवन पसन्द थी। हर रोज काम ,सुबह से लेकर शाम तक संयुक्त परिवार की भरणपोषण में बिता। सारतत्त्व यही है कि अपने संतान के अच्छे माता पिता बने।यही संपति, विरासत सबकुछ है। नेक इरादे, कठिन परिश्रम और ईमानदारी से किया गया कार्य सार्थक व संतोषजनक होता है। आप सभी के आशीर्वाद के इच्छुक हूँ कि आगे चलता रहूँ।
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